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भक्ति की शक्ति
(सांस्कृतिक पृष्ठभूमिः)
संसार के प्रायः सभी धर्मों में एक बात विशेष रूप से स्वीकृत है। वह यह कि जब संसार के सभी सहारे छूट जाते हैं- कोई सहारा नहीं दिखाई देता, तब कोई अदृश्य शक्ति ही सहायक बन कर आती है। उस अदृश्य शक्ति को को वैदिक धर्मी भगवान् कहते हैं। एक प्रसिद्ध सुवचन भी है'निर्बल के बल राम'। उस शक्ति को आत्मवादी श्रमणधर्मी धार्मिक श्रद्धाबल कहते हैं। एक के लिए भगवन्नाम आधार बनता है तो दूसरे के लिए परमेष्ठी परमात्मा के प्रति नमन/समर्पण का प्रतीक- महामंत्र नवकार।
भगवान् या महामंत्र नवकार-इनकी आराधना ही साधक की साधना का लक्ष्य होता है। तीर्थंकर महावीर ने तो धर्म के अतिरिक्त दृश्यमान समस्त सहारों को मिथ्या और भ्रम के अतिरिक्त कुछ नहीं माना। उन्होंने पुकार कर कहा
जरामरणवेगेणं बुज्झमाणाणं पाणिणं। धम्मो दीवो पइट्ठो य गई सरणमुत्तमं ॥
-जरा और मृत्यु के तेज प्रवाह में बहते हुए इस प्राणी के लिए धर्म ही एकमात्र सहारा है। वही प्रतिष्ठा है और उत्तम गति है।
धर्म शरण है तो उसके परम उपदेशक तीर्थंकर भगवान् तो सभी के लिए परम शरण होंगे- यह निर्विवाद है। इसी दृष्टि से बौद्ध परम्परा
रितीय सण्ड/211