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________________ बनाना शुरु कर दिया। वह पूनिया श्रावक के नाम से जगत्-प्रसिद्ध हुआ। . पिता काल सोकरिक ने अपने पुत्र सुलस को पैतृक धन्धे में लौटाने के अनेक प्रयास किए। उसने एक रात्री में सुलस की झोपड़ी में आग लगवा दी। झोपड़ी और उसमें संग्रहीत रूई जल कर स्वाहा हो गई। महामंत्री अभय कुमार को सुलस की स्थिति की सूचना मिली तो वे उसके पास पहुंचे और उसे सुन्दर भवन देने का प्रस्ताव रखा। सुलस ने इसे विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। _ झोपड़ी के पुनर्निर्माण तथा रूई जलने से हुए नुकसान को पूरा करने के लिए सुलस और उसकी पत्नी ने क्रमशः एक दिन भोजन न करने का संकल्प लिया। निरन्तर एक वर्ष तक यह क्रम चला। एक दिन सुलस उपवासी रहते तो दूसरे दिन उसकी पत्नी । अक्षय तृतीया के दिन यह क्रम पूर्ण हुआ। अभयकुमार और भगवान् महावीर की संगति ने सुलस को शिकारी से पूणिया श्रावक बना दिया था। वह पूणिया श्रावक जिसके लिए स्वयं भगवान् महावीर ने राजा श्रेणिक से कहा था कि यदि वह पूणिया श्रावक की एक सामायिक भी खरीद सकेगा तो उसका नरकबंध टूट जाएगा। लेकिन राजा श्रेणिक पूणिया श्रावक की एक सामायिक को पूरा राज्य देकर भी नहीं खरीद सका था। ऐसा महान् साधक बन गया था-सुलस! [३] वाल्मीकि विदिक) रत्नाकर नाम का एक युवक कुसंगति में पड़कर लुटेरा बन गया। वह जंगल में आने-जाने वाले मुसाफिरों को लूटता था और उनका वध कर देता था। यही था उसके जीवन का क्रम। एक बार महर्षि नारद से उसका सामना हुआ। उसने नारद को ललकारा । नारद उस युवक पर दयार्द्र हो गए। उन्होंने कहा- “युवक! यह सब किसके लिए कर रहे हो?" तिीय तण्ड/207
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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