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________________ जंगल में अकेले और नंगे पैर चलते हुए अभयकुमार के पैर में एक शूल चुभ गया। वे लंगड़ा कर चलने लगे। राजगृह नगर के कुख्यात कसाई कालसोकरिक का पुत्र 'सुलस' शिकार के लिए जंगल में घूम रहा था। उसने मगध में महामंत्री को नंगे पैर और बिना सुरक्षा व्यवस्था के देखा। उसे आश्चर्य हुआ। वह अभयकुमार के निकट आया और उन्हें प्रणाम करके अपना आश्चर्य प्रकट किया- “महामंत्री! आज इस अवस्था में कहां जा रहे हैं? न रथ, न सेना और न ही जूता!' अभयकुमार सुलस को जानते थे। उन्होंने कहा- “सलस! पहले मेरे पैर में चुभे शूल को निकालो। बाद में मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा।" सुलस ने तीर की तीक्ष्ण नोक से अभय कुमार के पैर से शूल निकाल दिया। उन्हें बड़ा आराम मिला। वे बोले-"सुलस! गुणशीलक उद्यान में भगवान् महावीर आए हैं। वे परम वैद्य हैं। वे जीवन में चुभे हिंसा-घृणा और अधर्म के शूलों को निकालते हैं। मैं उन्हीं के पास जा रहा हूं।" __ "क्या मैं भी आपके साथ चलूं?" सुलस ने पूछा- “क्या वह द्वार मेरे लिए भी खुला है?" ___ "क्यों नहीं, सुलस!' अभय बोले-"महावीर का द्वार प्रत्येक का अपना द्वार है। वे सब की चिकित्सा करते हैं।' ___ गुणशीलक तक के मार्ग में महामंत्री अभय और सुलस के मध्य मधुर वार्तालाप चलता रहा। अभय के समधुर व्यवहार और निश्छल प्यार ने सुलस के हृदय में परिवर्तन के बीज बो दिए। वे दोनों भगवान् महावीर की सभा में पहुंचे। भगवान् महावीर ने अहिंसा और करुणा जैसे आत्मगुणों पर प्रकाश डाला तथा जीवहिंसा और क्रूरता को दुःख व पतन का कारण बताया। प्रभु के उपदेश ने सुलस का हृदय आमूलचूल बदल डाला। उसने आजीवन अहिंसा पालन का व्रत ग्रहण कर लिया। सुलस घर लौटा। उसने अपने पिता कालसोरिक को जीववध का व्यापार छोड़ने के लिए कहा। कालसोकरिक जीववध को ही अपना धर्म समझता था। उसने अपने पुत्र की बात नहीं मानी। सुलस ने अपनी पत्नी के साथ अपने पिता का घर छोड़ दिया। घास-फूस की एक कुटिया बनाकर वह अपनी पत्नी के साथ रहने लगा। आजीविका के लिए उसने रूई की पूनियां जन टिकार्ग की सास्कृतिक एकता 206)
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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