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पहुंचने के लिए अर्जुनमाली रूपी मौत की नदी को पार करना था। यह साहस कोई न जुटा पाया।
महावीर के परमभक्त सुदर्शन सेठ राजगृह में रहते थे। उन्हें भी प्रभु-पदार्पण का सुसमाचार मिला । प्रभु-दर्शन की तीव्र प्यास बलवती हुई। सुदर्शन को सभी ने रोकने का प्रयास किया। अर्जुमाली का भय दिखाया। लेकिन जिसे सच्ची लगन हो, उसे कोई नहीं रोक सकता। मृत्यु उसे भयभीत नहीं कर सकती।
सुदर्शन नगर से बाहर निकले । गुणशीलक उद्यान की ओर जहां महावीर विराजित थे, उनके कदम बढ़ रहे थे। सहसा अर्जुनमाली उधर से आ निकला। निर्भय सुदर्शन को देखकर उसने मुदगर घुमाया और अट्टहास करते हुए उन्हें मारने को दौड़ा।
अंगुलिमाल बौद्ध साहित्य में अंगुलीमाल नामक एक डाकू की कथा आती है। उसमें बताया गया है कि डाकू भी संत बन सकता है। कथा इस प्रकार है
अंगुलिमाल नाम का एक क्रूर डाकू था। उसने निश्चय किया था कि एक हजार लोगों को मारकर उनकी अंगुलियों की माला बना कर वह अपने गले में धारण करेगा। इसीलिए उसका नाम अंगुलिमाल पड़ गया था।
__अंगुलिमाल के लिए किसी की हत्या कर देना कठिन कार्य न था। उसका हृदय आर्तनाद सुन-सुनकर पत्थर का हो गया था। वह नौ सौ निन्यानबे लोगों को मार चुका था। नौ सौ निन्यानबे अंगुलियों की माला उसके गले में थी। अपने एक हजारवें शिकार की खोज में वह जंगल में भटक रहा था।
तथागत बुद्ध आत्मसाधना कर रहे थे। अंगुलिमाल की दृष्टि बुद्ध पर पड़ी। वह बड़ा प्रसन्न हुआ। रौद्र रूप धारण किए हुए वह बुद्ध की हत्या करने के लिए उनकी ओर बढ़ा। बुद्ध अभय थे। शान्त, दान्त-निर्भय। अंगुलिमाल आश्चर्यचकित हो उठा। आज तक उसने मृत्यु से भागते भयभीत लोगों को ही देखा था। अभय पुरुष को समक्ष देखकर आज वह स्वयं भयभीत हो गया।
तथागत के हृदय की करुणा अंगुलिमाल पर बही। वे बोले- "दस्युराज! क्या चाहते हो?"
"मैं तुम्हारा वध करना चाहता हूं।" अंगुलिमाल बोला-"तुम्हारी अंगुली काटकर अपनी अंगुलिमाला को पूर्ण करूंगा।"
"मेरी हत्या से पहले मेरा एक छोटा सा कार्य कर दो।" बुद्ध ने कहा। "कहिए! क्या करूं?" अंगुलिमाल ने पूछा।
सितीय माS.203