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-सज्जनों-साधुओं की संगति करनी चाहिए।
अलं बालस्स संगेण (आचारांग. 1/2/5)।
-मूर्ख/मूढ व्यक्ति की संगति नहीं करनी चाहिए। खुड्डेहि सह संसग्गिं हासं कीडं च वजए। (उत्तरा. 1/9)।
-क्षुद्र (नीच) लोगों के साथ हंसी-मजाक, खेल खेलने आदि किसी भी प्रकार के संसर्ग से बचे।
उपर्युक्त समग्र भारतीय विचारधारा की पृष्ठभूमि में कुछ कथानक यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं। जहां महर्षि वाल्मीकि का कथानक वैदिक परम्परा से है, वहां अर्जुनमाली व सुलस कसाई के कथानक जैन परम्परा से हैं। अंगुलिमाल का जीवन-वृत्त बौद्धपरम्परा का प्रतिनिधित्व करता है। इन सभी कथानकों में सत्संगति के नैतिक उपदेश का समर्थन तो कथाकार का अभीष्ट रहा ही है, साथ ही सत्संगति से व्यक्ति के उदात्त व परिष्कृत होने का निदर्शन भी है।
[1] अर्जुनमाली
(गैन)
अर्जुनमाली राजगृह नगर का रहने वाला था ।कुछ दुष्ट युवकों ने उसके सामने ही उसकी पत्नी बन्धुमती से बलात्कार किया तो अर्जुन के क्रोध की सीमा न रही। उसने अपने इष्टदेव मुद्गरपाणि यक्ष को पुकारा। यक्ष अर्जुन में प्रवेश कर गया। यक्ष की शक्ति से अर्जुनमाली की देह अपरिमित बल से सम्पन्न हो गई।
क्रोध और बल का सम्मिलन हुआ तो हिंसा का दरिया बह गया। अर्जुनमाली ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। अर्जुन के आतंक से पूरा मगध प्रदेश थर्राने लगा। भयभीत राजगृहवासियों ने नगरद्वार बन्द कर लिए। राजा-प्रजा किसी का भी वश नहीं चला अर्जुनमाली पर।
तीर्थंकर महावीर राजगृह के बाहर पधारे। नगर के श्रद्धालु श्रावक भगवान् के दर्शनों के लिए उतावले बने। लेकिन भगवान् तक
जैन
मंदिक धर्म की सार कतिक एकता 2022