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को राजा के बाग से फल लाने के लिए विवश कर दिया। त्रियाहठ के सम्मुख अन्ततः चाण्डाल को झुकना पड़ा।
सशस्त्र बागरक्षकों की आंखें बचाकर चाण्डाल ने आकर्षणी विद्या के प्रयोग से आम्रफलों से लदी एक शाखा को बाग की दीवार से बाहर झुकाया। फल तोड़े और अपनी पत्नी को लाकर दे दिए।
आम्रफल चोरी का यह क्रम कई दिन चला। राजा श्रेणिक को सूचना मिली। चोर को पकड़ने के अनेक यत्नों में विफल रहने पर, राजा ने यह दायित्व अभयकुमार को सोंपा। अभयकुमार रात्री में वेश बदलकर नगर-भ्रमण करने लगे। एक रात्री में चाण्डाल गृह के निकट से निकलते हुए अभयकुमार की दृष्टि कूड़े के ढेर पर पड़े आम्रछिलकों पर पड़ी। फिर अभयकुमार को चोर को पकड़ते देर न लगी। अभयकुमार द्वारा चतुराई से पूछने पर चाण्डाल ने आकर्षणी विद्या-बल से आम्र चुराने की बात स्वीकार कर ली। दूसरे दिन चाण्डाल चोर को राजा श्रेणिक के समक्ष लाया गया। राजा श्रेणिक ने क्रोधित होते हुए चाण्डाल को मृत्यु-दण्ड सुना दिया।
__मृत्यु को साक्षात् देखकर चाण्डाल भयविह्वल हो उठा। उसने करूण नेत्रों से अभयकुमार की ओर देखा। अभयकुमार दयार्द्र हो उठे। उन्होंने चाण्डाल की प्राणरक्षा के लिए अपने बुद्धिबल का उपयोग किया। उन्होंने ऐसा मार्ग निकाला कि चाण्डाल के प्राण भी बच गए और राजाज्ञा की अवहेलना भी नहीं होने दी।
अभयकुमार राजा श्रेणिक से बोले- “महाराज! यह चाण्डाल अभी मार दिया गया तो इसकी विद्या इसके साथ ही समाप्त हो जाएगी। अतः पहले आप इसकी आकर्षणी विद्या सीख लीजिए बाद में दण्ड दीजिए।"
राजा श्रेणिक को अभयकुमार की बात उचित लगी। उन्होंने चाण्डाल को बन्धनमुक्त कराया और उसे आदेश दिया कि उन्हें अपनी विद्या सिखाए। चाण्डाल राजा को विद्या सिखाने लगा। बार-बार दोहराकर भी श्रेणिक विद्या को कण्ठस्थ नहीं कर पा रहे थे। वे झुंझला उठे और बोले कि तुम मन लगाकर विद्या नहीं सिखा रहे हो।
यह सुनकर अभयकुमार बोले-“राजन्! आप गुरु-आसन की मर्यादा को तोड़ रहे हैं। आप ऊंचाई पर राजसिंहासन पर बैठे हैं और