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________________ - जिससे धर्म-शिक्षा ग्रहण करे, उसके प्रति विनय-: -भाव प्रदर्शित करना अपेक्षित है । गुरु या आचार्य के बराबर बैठने का निषेध भी जिनवाणी में है (द्र. उत्तरा. सू. 1/18-19)। शिक्षक और शिष्य के आसनों की उपयुक्तता को दर्शाती तीन कथाएं यहां उद्धृत की गई हैं। इनमें से एक कथा जैन कथा साहित्य से उद्धृत है तथा शेष दो कथाएं वैदिक धर्म की पौराणिक कथाओं से ली गई हैं। [2] राजा श्रेणिक और चाण्डाल (जैन) अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व-मगध देश पर महाराजा श्रेणिक राज्य करते थे। राजगृह नगरी उनकी राजधानी थी । उनके बड़े पुत्र अभयकुमार बड़े बुद्धिमान् थे । इसीलिए श्रेणिक ने उन्हें अपना महामंत्री नियुक्त कर लिया था । महाराजा श्रेणिक का गुणशीलक नामक एक अतिसुन्दर और विशाल राजोद्यान था । उस उद्यान के एक भाग में एक आम्रबाग था जो देव वरदान के कारण प्रत्येक ऋतु में फलवान् बना रहता था । सर्वऋतुफलदाता उस आम्रबाग की सुरक्षा के लिए सशस्त्र पहरेदार नियुक्त किए गए थे। गृह के बाह्यभाग में एक चाण्डाल रहता था । उसे आकर्षणी विद्या सिद्ध थी । विद्याबल से वह चाण्डाल जड़ और चेतन वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित कर सकता था । अपने गुरु के निर्देश के कारण वह अपनी विद्या का प्रदर्शन चमत्कार या स्वरोजगार के लिए नहीं कर सकता था । एक बार चाण्डाल की पत्नी गर्भवती हुई। उसे गर्भकाल में आम खाने की इच्छा हुई । गर्भकालीन इच्छाएं बड़ी प्रबल होती हैं । उसने अपने पति को आम खाने की अपनी इच्छा बताई। पति बोला प्रिये ! तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण नहीं हो सकती। क्योंकि यह आमों की ऋतु नहीं है ।" 66 चाण्डाल - पत्नी अपने पति की आकर्षणी विद्या और राजा श्रेणिक के सर्वऋतुफलदाता आम्रबाग के सम्बन्ध में जानती थी । उसने अपने पति वितीय स्वराज
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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