________________
धर्म, अर्थ व 'काम' की शिक्षा दें । प्रह्लाद पुनः शिक्षा के लिए गुरु-पुत्रों के साथ चले गए। गुरुपुत्रों ने प्रह्लाद को दैत्य - मर्यादाओं की शिक्षाएं दीं। लेकिन प्रह्लाद ने उन्हें ग्रहण नहीं किया ।
प्रह्लाद को जब भी समय मिलता, वे छोटे-छोटे बालकों को एकत्रित कर लेते और उन्हें भगवन्नाम की महत्ता बताते । अनेक बालक प्रह्लाद के अनुगामी बन गए ।
शिक्षा-समाप्ति पर प्रह्लाद अपने घर पहुंचे । हिरण्यकशिपु ने पुनः एक दिन प्रह्लाद से कहा - "बेटे ! आज तक तुमने जो सीखा है, उसका सार क्या है?"
भगवान् की भक्ति ही सार है!” प्रह्लाद बोले - “पिता जी ! भक्ति के अतिरिक्त शेष समस्त जागतिक पदार्थ निःसार हैं । "
66
पुत्र की बात सुनकर हिरण्यकशिपु लाल-पीला हो गया । उसने धक्का देकर प्रह्लाद को नीचे गिरा दिया। वह गरजा - "गुरु- पुत्रों ! तुमने प्रह्लाद को शिक्षा के नाम पर हमारे शत्रु भवगान् की भक्ति सिखाई है। तुम्हारा अपराध अक्षम्य है ।"
गुरुपुत्रों को भय से कांपते हुए देखकर प्रह्लाद ने कहा“पिता जी ! गुरु- पुत्र निर्दोष हैं। मैंने इनसे अक्षर ज्ञान ही प्राप्त किया है, तात्त्विक ज्ञान नहीं । तात्त्विक ज्ञान तो मेरे हृदय से उमड़ा है । भगवद् भक्ति को स्रोत मेरी आत्मा से फूटा है ।"
हिरण्यकशिपु अपना भान भूल गया । उसने प्रह्लाद को मार देने का आदेश दिया । दैत्य तलवार-भाले लेकर प्रह्लाद पर टूट पड़े । लेकिन उनके शस्त्र प्रह्लाद की देह को स्पर्श करते ही टूट कर बिखर गए । हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को अनेक विधियों से मरवाना चाहा, लेकिन सफल न हो सका। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका के पास एक ऐसा वस्त्र था जो आग को निष्प्रभावी बना देता था । होलिका वह वस्त्र ओढकर, प्रह्लाद को गोद में लेकर यह कहकर अग्निकुण्ड में बैठ गई कि यदि भगवान् में शक्ति होगी तो तुझे बचा लेंगे । चमत्कार घटा। होलिका का वस्त्र उड़कर प्रह्लाद की देह से जा लिपटा । होलिका जल मरी । प्रह्लाद बच गए। हिरण्यकशिपु प्रह्लाद को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानने लगा । उसने प्रह्लाद को मारने का स्वयं निश्चय कर लिया । उसने प्रह्लाद को दरबार
जन एक धर्म की सास्कृतिक एकता