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________________ की खोज में निकल गया जिन्होंने उसे महामंत्र प्रदान किया था । इस तरह अखण्ड श्रद्धा के द्वारा 'नमोकार महामन्त्र' का दिव्य चमत्कार घटित हुआ । [२] भक्त प्रह्लाद (वैदिक) हिरण्यकशिपु दैत्यों का राजा था। वह भगवान् का घोर विरोधी था। वह स्वयं को ही भगवान् मानता था । अपनी प्रजा को भी वह स्वयं को भगवान् मानने के लिए बाध्य करता था । जो भी व्यक्ति किसी भगवान् को मानता था वह उसकी हत्या करा देता था । वह घोर अहंकारी था । हिरण्यकशिपु की रानी का नाम कयाधू था। जब वह गर्भवती थी तो उसे देवर्षि नारद के पास रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । देवर्षि नारद के सत्संग का उसके गर्भस्थ शिशु पर बड़ा प्रभाव पड़ा । कयाधू ने जिस शिशु को जन्म दिया, उसका नाम प्रह्लाद रखा गया । प्रह्लाद पांच वर्ष के हुए तो उसके पिता दैत्यराज हिरण्यकशिपु ने गुरुपुत्रों के पास उन्हें शिक्षा के लिए भेज दिया । गुरुपुत्र बालक प्रह्लाद को दैत्य-परम्परा के अनुसार शिक्षा देते, लेकिन प्रह्लाद मात्र उस शिक्षा को सुनता था, ग्रहण नहीं करता था । उसके हृदय में तो भगवान् का नाम समाया था । वह भगवशिक्षा ही प्राप्त करना चाहता था। वह सदैव एकान्त में बैठकर भगवान् का भजन किया करता था । एक बार प्रह्लाद घर आए। माता ने उन्हें वस्त्राभरणों से सजाया । प्रह्लाद पिता के पास गए। उन्हें प्रणाम करके उनकी गोद में बैठ गए। हिरण्यकशिपु ने प्रेम से अपने पुत्र के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा" बेटे! तुमने जो अच्छी बातें सीखी हैं, मुझे बताओ ।" प्रह्लाद बोले - “पिता जी ! इस जगत् में भगवन्नाम के अतिरिक्त अन्य कुछ अच्छी बात नहीं है। प्रत्येक मनुष्य को उस परमपिता का स्मरण करना चाहिए। उसी की ज्योति से यह समस्त ब्रह्माण्ड ज्योतिर्मय है ।" पुत्र की बात सुनकर हिरण्यकशिपु आश्चर्य में पड़ गया । उसने गुरु-पुत्रों को निर्देश दिया कि वे प्रह्लाद को दैत्य-कुल के अनुरूप
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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