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कारण परिवार के प्रत्येक सदस्य को पेट भरने के लिए कुछ न कुछ कार्य करना पड़ता था।
- अमरकुमार जंगल में ढ़ाक-पात बटोर कर शहर जाता था। उसे बेच कर वह चन्द पैसे प्राप्त करता था। जिस दिन वह 'काम' नहीं करता था, उस दिन उसे भोजन नहीं मिलता था।
एक बार जंगल में एक मुनिसंघ दिशाभ्रम के कारण भटक गया। मार्ग बताने वाला कोई न था। सहसा मुनि -प्रमुख की दृष्टि बालक अमरकुमार पर पड़ी। मुनि अमरकुमार के निकट आए और बोले- “बालक तुम कौन हो?"
"मेरा नाम अमरकुमार है।" “कहां रहते हो?" "राजगृह नगर में।" “क्या हमें राजगृह का मार्ग बताओगे?"
"क्यों नहीं?" अमरकुमार बोला- “चलिए मेरे साथ। मैं आपको राजगृह तक का मार्ग बता देता हूं।'
मुनि-संघ अमरकुमार का अनुगमन करता हुआ राजगृह पहुंच गया। मुनि-प्रमुख ने अमरकुमार को साधुवाद दिया और पूछा“बालक! यह आयु तो पढ़ने की है। तुम पढ़ते क्यों नहीं हो?"
अमरकुमार ने पारिवारिक दरिद्रता की कष्ट कहानी मनियों को सुना दी। मुनियों का हृदय करुणार्द्र हो उठा। उन्होंने अमरकुमार को महामंत्र नमोकार प्रदान करते हुए कहा-“अमर! यह महामंत्र सदैव श्रद्धा से पढ़ना । यह सदैव तुम्हारी रक्षा करेगा।' श्रद्धासिक्त हृदय में महामंत्र धारण करके अमरकुमार अपने घर चला गया।
उस समय राजा श्रेणिक राजगृह के राजा थे। तब तक वे भगवान् महावीर के उपासक न बने थे। राजसी वैभव के प्रदर्शन के लिए उन्होंने राजगृह में एक अभूतपूर्व चित्रशाला का निर्माण कराया। चित्रशाला का सिंहद्वार अतीव भव्य बना । लेकिन रात्री में वह अचानक गिर गया। दूसरे दिन पुनः कुशल शिल्पियों ने सिंहद्वार का निर्माण किया। लेकिन रात्री में पुनः द्वार गिर गया। द्वार के पुनः पुनः ढह जाने से राजा श्रेणिक को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने नगर के ज्योतिषियों को आमंत्रित किया।ज्योतिषियों ने