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________________ है, इसलिए उक्त चमत्कारिक लाभ होने की व्याख्या इस प्रकार की जाती है- परमेश्वर की आराधना से आत्मीय भावात्मक परिणाम प्रशस्त होते जाते हैं और फलस्वरूप अशुभ कर्मों की मन्दता व शुभ कर्मों की प्रबलता होती जाती है, जिससे समस्त संकटों का विनाश सम्भव हो जाता है। उपर्युक्त श्रद्धा-भक्ति से सम्बद्ध चमत्कारों का वर्णन भारतीय साहित्य में प्रचुरतया प्राप्त होता है। निश्चित ही इन्हें प्राचीन मनीषियों द्वारा अनुभूत सत्य के रूप में मानने के लिए हम बाध्य हैं। वैदिक परम्परा के ईश्वर की तो स्पष्ट उद्घोषणा है- 'न मे भक्तः प्रणश्यति' (गीता, 9//31)अर्थात् 'मेरा भक्त कभी विनाश को प्राप्त नहीं होता', उसे कोई क्षति नहीं हो पाती। और भी- अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् (गीता, 9/22)- अर्थात् अनन्यचित्त से जो भक्त-श्रद्धालु मेरी उपासना करते हैं, उन के योग-क्षेम की सारसम्भाल मैं करता हूं। योग-क्षेम से तात्पर्य है- नयी अभीष्ट उपलब्धियों की प्राप्ति, तथा प्राप्त उपलब्धियों की रक्षा । निष्कर्ष यह है कि भक्त कभी संकटों का सामना नहीं करता, यदि संकट आ भी जाएं तो भक्ति-भाव के अधीन परमेश्वर की कृपा से वे संकट नष्ट हो जाते हैं- यही श्रद्धा-भक्ति का चमत्कारी स्वरूप है जो वैदिक परम्परा में मान्य है। श्रद्धा की अडोलता से होने वाले चमत्कारों की पुष्टि करने वाले दो कथानक यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं। अभयकुमार का कथानक जैन परम्परा से सम्बद्ध है तो भक्त प्रहलाद का कथानक वैदिक परम्परा से सम्बद्ध है। भक्त या साधक के जीवन में श्रद्धा-भक्ति के कारण कभी-कभी कुछ चमत्कार घटित होते हैं, उसी का निदर्शन इन कथानकों के माध्यम से कराया जा रहा है। श्रद्धाजनित चमत्कारपूर्ण घटना की दृष्टि से इन कथानकों की समानता द्रष्टव्य है। [१] अमरकुमार (जैन) राजगृह नगर में ऋषभदत्त नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। उसके आठ पुत्र थे। उसके सबसे छोटे पुत्र का नाम अमरकुमार था। यह परिवार अत्यन्त दरिद्रता में जीवन बिता रहा था। दरिद्रता के सजन गण विक आम की सारकृतिक कHI1800
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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