________________
एक झटके से विदुरानी का ध्यान टूटा । अपनी भयानक भूल पर उसे महान् दुःख हुआ। उसके नेत्रों से टप-टप आंसू टपकने लगे। इस बार उसने केला छीला। छिलका नीचे डाल दिया और केला श्रीकृष्ण के हाथ पर रख दिया। श्रीकृष्ण ने केला खाया। उन्होंने गर्दन हिला दी और बोले“अब वह स्वाद नहीं रहा। विदुर जी! आप बड़े बेमौके पर आ गए। आज तो मैं वह भोजन कर रहा था जिसके लिए मैं सदैव अतृप्त रहता हूं। उन छिलकों से आज जो स्वाद मुझे मिल रहा था, वैसा स्वाद तो मोहन भोगों से भी आज तक प्राप्त नहीं हुआ"
जिस भोजन में भक्ति का स्वाद मिल जाए, वह भोजन देखने में अतिसाधारण होकर भी अमृत होता है। यही दर्शन विदुरानी के छिलकों से निःसृत हुआ था।
000
ऊपर प्रस्तुत सभी कथानकों में एक ही तथ्य मुखरित होता है कि प्रेम ही अमृतमय परम आस्वाद है। शबरी के बेर, विदुरानी के केले के छिलके, चन्दना के उड़द बाकुले, निर्धन भक्त की सूखी रोटी तथा नन्हे बालक द्वारा दी गई रेत की भिक्षा- ये वस्तुएं आराध्य को प्रेमपूर्वक समर्पित की गई हैं। वस्तुएं जरूर साधारण हैं किन्तु देने वाले की प्रेमभावना असाधारण है। साधारण वस्तुओं के दान से भी घटनाएं असाधारण बन गईं। वस्तुतः प्रेम अमृत है, उसका पावन स्पर्श पाकर प्रत्येक वस्तु असाधारण बन जाती है।
निस्सन्देह प्रेमपूर्ण समर्पण में श्रद्धा-भक्ति के साथ-साथ निश्छलता, निरभिमानता व त्याग की पावन भावना जुड़ी हुई है जिसके कारण, समर्पित की जाने वाली वस्तु का महत्त्व नहीं रह जाता, महत्त्व रहता है तो भक्त के उदार विराट् हृदय का और उसे उसी उदारता से स्वीकार करने वाले की सहज निश्छलता का। वहां प्रेम के धरातल पर आराध्य व आराधक- दोनों में एक सूक्ष्म-सी अभेद सम्बन्ध की रेखा स्थापित हो जाती है। उक्त सत्य उपर्युक्त सभी कथानकों में समानरूप से मुखर हुआ है।
रिजाल र सारा :--