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सहजता से सभी प्रस्तावों को मौन देते हुए श्रीकृष्ण के कदम बढ़ते रहे। किसी अज्ञात पुकार की डोर से बन्धे वे खिंचे चले जा रहे थे। हस्तिनापुर का आबालवृद्ध श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए राजमार्ग पर उतर आया था। हस्तिनापुर के महामंत्री महात्मा विदुर की पत्नी अपनी पर्णकुटी के द्वार पर बैठी श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रही थी। वह विचारों में लीन थींक्या वे दीन-बन्धु मेरे द्वार पर भी आएंगें? मार्ग में सुसज्जित अट्टालिकाएं क्या उनके लिए बाधा नहीं बन जाएंगीं? उसकी रोम-रोम प्रार्थना से भर गया-"मधुसूदन! मेरी कुटी का एक-एक तृण तुम्हारे दर्श को प्यासा है। अपनी पगधूलि से इस कुटी को पावन करो। आ जाओ वासुदेव! गिरिधर! राजाधिराज वासुदेव!”
गुरुनानकदेव गुरु नानक देव सिखों के प्रथम गुरु थे। वे सत्य, अहिंसा और मानवता के अवतार थे। उन्होंने स्वयं कष्ट सहकर भी मानव-समाज को सत्य धर्म का उपदेश दिया था। गुरु नानक एक बार एक गांव में गए। एक निर्धन भक्त के घर ठहरे। प्रतिदिन उपदेश करने लगे। सैकड़ों ग्रामवासी उस निर्धन के आंगन में गुरु नानक का सत्संग सुनते। उस गांव में एक धनी सेठ रहता था। लोगों को लूट-लूट कर उसने बहुत धन जमा कर लिया था। धन अहंकार पैदा करने वाला होता है। उस सेठ को भी बड़ा अहं था। वह स्वयं को ग्राम का सबसे बड़ा आदमी समझता था। उस सेठ को यह जानकार कि अमुक निर्धन व्यक्ति के आंगन में प्रतिदिन गुरु नानक देव सत्संग करते हैं, बड़ी इर्ष्या हुई। उसने नानक देव को अपने घर बुलाने का निश्चय कर लिया।
सेठ गुरु नानक के पास पहंचा। सत्संग सुना। तत्पश्चात् उसने नानक देव से अपने घर भोजन करने का आग्रह किया। नानक देव ने उसके आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। इससे उस सेठ के अहंकार को चोट लगी। उसने अधीर होते हुए गुरु नानक से कहा- "गुरुदेव! आप मेरी भक्ति को ठुकरा क्यों रहे हैं। मेरे भोजन में क्या कमी है?"
"देखना चाहते हो!" गुरु नानक देव बोले- "ऐसा करो कि तुम मेरे लिए यहीं भोजन ले आओ। तुम्हारे भोजन की अस्वीकृति का कारण तुम अपनी आंख से देख सकोगे।"
धनी सेठ ने विभिन्न पकवान तैयार कराए। चांदी के बर्तनों में भोजन लेकर वह गुरु नानक देव के पास पहुंचा। तब तक निर्धन भक्त भी गुरु नानक के लिए रूखी रोटी ले आया था। गुरु नानक ने एक हाथ से निर्धन व्यक्ति की रोटी पकड़ी तथा दूसरे हाथ में उस धनी के विभिन्न पकवान लिए। उन्होंने अपनी दोनों मुट्ठियां भींचीं। निर्धन भक्त की रखी रोटी से दुग्धधार बह चली। उस धनी के भोजन से रक्त की धार निकली।