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________________ भयानक दुष्परिणाम का कारण बनता है। इसके विपरीत, क्षमा सद्गति आदि सुखद व प्रशस्त परिणाम देती है । सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से भी देखें तो यह परम सत्य उद्घाटित होता है कि वैर या क्रोध से किसी विरोध या कलह का समाधान नहीं होता । वैर से वैर बढा है और परस्पर वैर रखने वालों की अनेकों पीढियां अकाल कालकवलित हुई हैं । किन्तु क्षमा से शान्ति, मैत्री, निर्भयता, परस्पर विश्वास व उदारता के वातावरण का निर्माण होता है और व्यक्तियों में प्रेम व सौहार्द की स्थापना होती है । इस सत्य को वैदिक व जैन- दोनों परम्पराओं में समान रूप से स्वीकारा गया है। उपर्युक्त कथानकों में क्षमा की महत्ता पूरी तरह प्रस्फुटित हुई है। वैदिक परम्परा के श्रीकृष्ण, पाण्डवपत्नी सती द्रौपदी, ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और जैन परम्परा के तीर्थंकर भगवान् महावीर ने क्षमा का उत्कृष्ट आदर्श प्रस्तुत कर भावी पीढी को क्षमा अपनाने की प्रेरणा दी है। दोनों परम्पराओं के सभी कथानकों में समानतया एक स्वर से क्षमा की उत्कृष्टता रेखांकित हुई है जो दोनों परम्पराओं की साझी भारतीय संस्कृति में एक सर्वमान्य मौलिक आदर्श के रूप में मान्य रही है।
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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