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द्रौपदी के पास ले आए। भय से कांपते हुए बन्धनों में बंधे अश्वत्थामा को द्रौपदी ने देखा। उसकी भृकुटी चढ़ गई। आंखों में रक्त उतर आया। उसने हाथ में तलवार ली और अश्वत्थामा की ओर बढ़ी। द्रौपदी ने अश्वत्थामा का सिर काटने के लिए जैसे ही तलवार ऊपर उठाई उसका मातृहृदय जाग उठा। उसे तत्काल विचार आया "द्रौपदी! अश्वत्थामा तो मर जाएगा। परन्तु उसकी माता? उसकी माता क्या पुत्र विरह में पागल नहीं हो जाएगी? पुत्र की मृत्यु का कितना कष्ट होता है यह मैं स्वयं अनुभव कर रही हूं। अश्वत्थामा की मां तो निर्दोष है। फिर उसे दण्ड क्यों मिले?"
एक मां का हृदय एक मां के हृदय को पुत्र-मृत्यु का कष्ट प्रदान करते हुए कांप उठा । द्रौपदी के हाथ से खड्ग गिर गया। वह बोलीजाने दो इसे! इसकी मृत्यु से दण्ड इसे नहीं, इसकी माता को मिलेगा। मैं यह नहीं चाहती कि जैसे मैं अपने बालकों के लिए आंसू बहा रही हूं, वैसे इसकी माता गौतमी भी आंसू बहाए। मैं किसी निर्दोष माता को इतना बड़ा दण्ड नहीं देना चाहती:
मा रोदीरस्य जननी, गौतमी पतिदेवता। यथाऽहं मृतवत्साऽऽर्ता रोदिम्यश्रुमुखी मुहुः॥
(भागवत पु.1/7/47) द्रौपदी की इस महान् क्षमा को देखकर अश्वत्थामा स्वयं के प्रति आत्मग्लानि और द्रौपदी के प्रति महान् कृतज्ञता से भर गया। वह बोला-"देवी द्रौपदी! तुम्हारी इस महान क्षमा और असीम करुणा को सदा याद रखा जाएगा। साहित्यकारों और कवियों की कलम तुम्हारी क्षमा और करुणा की आशंसा में सदैव अविश्रांत चलती रहेंगी।"
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क्रोध व क्षमा- ये दो विपरीत स्थितियां हैं। जहां क्रोध व्यक्ति की शक्ति को क्षीण करता है और उसके सद्गुणों का नाश कर अनेकानेक दुर्गुणों को संवर्धित करता है, वहां क्षमा व्यक्ति को स्वस्थ-शक्तिसम्पन्न बनाती है और अनेकानेक सद्गुणों को जन्म देती है। धार्मिक आराधना वाले व्यक्ति के लिए तो क्रोध
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