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प्रशंसा जो अकारण उनका शत्रु बन बैठा है। जिसने अहंकार के कारण उसके सौ पुत्रों की हत्या कर डाली है। फिर भी वशिष्ठ मेरी प्रशंसा कर रहे हैं। अब मैं समझा वशिष्ठ जी के ब्रह्मर्षि होने का गुप्त रहस्य। ऐसा विचार करते हुए विश्वामित्र जी ने शस्त्र फेंक दिया। और वे आंसू बहाते हुए वशिष्ठ जी के चरणों पर गिर पड़े और अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगने लगे।
विश्वामित्र के नेत्रों से पश्चात्ताप के आंसुओं की अविरल अश्रुधारा देखकर वशिष्ठ जी ने उन्हें उठाकर छाती से लगाते हुए कहा- "आओ, ब्रह्मर्षि! पश्चात्ताप का जल बड़े-बड़े दुष्कृत्यों को धो डालता है।" वशिष्ठ जी द्वारा ब्रह्मर्षि स्वीकृत कर लिए जाने पर विश्वामित्र जी को बड़ी प्रसन्नता हुई।
[४] मातृहृदया द्रौपदी
(वैदिक)
महाभारत के युद्ध में दुर्योधन-पक्ष के सभी बड़े-बड़े योद्धा वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। कौरव सेना का अन्तिम सेनापति शल्य भी गिर गया। दुर्योधन पराजय को साक्षात् देखकर हड़बड़ा गया। वह एक जलाशय में छिप गया। जय-पराजय के निश्चित निर्धारण के लिए पाण्डवों ने दुर्योधन को ललकारा । दुर्योधन जल से बाहर निकला। अन्ततः भीम और दुर्योधन के मध्य युद्ध हुआ। दुर्योधन पराजित हो गया। .
इस घोर पराजय पर दुर्योधन को महान् दुःख हुआ। उसके श्वांस उसके कण्ठ में अटके थे। उसी समय गुरुद्रोण का पुत्र अश्वत्थामा दुर्योधन के पास आया। दुर्योधन की दुर्दशा पर आंसू बहाकर वह बोला"युवराज! यह हमारी पराजय का क्षण है। पराजय से उत्पन्न इस घाव को कैसे भरूं! पाण्डवों ने मेरे पिता को धोखे से मारा है। मैं इस बात को कभी नहीं भूल सकूँगा। हृदय चाहता है कि पांचों पाण्डवों के शीश धड़ से अलग कर दूं।"
. “पांचों पाण्डवों के शीश!" पीड़ा से कराहते हुए दुर्योधन बोला"मित्र! यदि तुम ऐसा कर दोगे तो मुझे पराजय में भी जय का सुख