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थे। काम और मोह के विजेता को किसी पद की आवश्यकता नहीं होती है। परन्तु ब्रह्मा जी ने उन्हें समझाया कि सूर्यवंश में श्रीराम अवतरित होंगे, वे उनके गुरु का गौरवशाली पद पाकर कृतार्थ हो जाएंगे, तब वशिष्ठ जी ने इस पद को स्वीकार कर लिया।
एक बार ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी के आश्रम में राजा विश्वामित्र आए। वशिष्ठ जी ने उनका आतिथ्य स्वीकार किया। वशिष्ठ जी ने कामधेनु गौ के प्रभाव से राजा विश्वामित्र और उनकी विशाल सेना का भोजनपानादि से विशेष सत्कार किया।गौ का यह महान् प्रभाव देखकर विश्वामित्र जी ललचा गए। उन्होंने वशिष्ठ जी से कामधेनु गौ की याचना की। वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र की याचना स्वीकार नहीं की।
राजा विश्वामित्र ने कामधेनु गौ के बदले अपार स्वर्ण देने का प्रस्ताव किया।वशिष्ठ जी बोले- “राजन्! ऋषिजन गाय का विक्रय नहीं करते हैं। भले ही उसके बदले में उन्हें सम्पूर्ण धरा का राज्य ही क्यों न मिलता हो।" सकती हैं। मनुष्यों! अपने अज्ञान और भ्रम को तोड़ो। अपने हृदयों से ईर्ष्या को नष्ट करके वहां प्रेम के फूल खिलाओ। क्योंकि प्रेम ही ईश्वर है।
ईसा मसीह के इन संदेशों को सुनकर हजारों लोग उनसे प्रभावित हुए और उन्हें ईश्वर का अवतार मानने लगे। ईसा ने इस बढ़ते प्रभाव को देखकर कुछ तथाकथित धार्मिक चिन्तित हो उठे। ईसा को यहूदी धर्म के लिए खतरा मानने लगे। उन्होंने शासकों से ईसा के विरूद्ध शिकायत की। शासकों ने ईसा के प्रचलित रूढ़ परम्पराओं का प्रचार करने के लिए बाध्य किया और निर्देश दिया कि वे सदियों से चली आ रही मान्यताओं का खण्डन न करें। ईसा को को निर्देश देते हुए वे शासक यह भूल गए कि सत्य का परम उपासक प्राण देकर भी असत्य का साक्षी नहीं हो सकता। ईसा सत्य के मार्ग पर डटे रहे। उन्होंने किसी के कहे की चिन्ता न की। वही कहा जो उनके हृदय ने कहा। वही किया जिसे उनकी आत्मा ने स्वीकार किया।
विरोधी बौखला उठे। ईसा को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें अनेक कष्ट दिए गए। इस पर भी वे अपने सिद्धान्तों पर अटल रहे। उन्हें मृत्युदण्ड दिया गया।
ईसा मसीह को क्रूस पर लटका दिया गया। कीलों से बिंधे उन के हाथों-पैरों से रक्त-धाराएं बह चलीं। उस क्षण भी प्रेमावतार प्रभु ईसा के अधरों से ये शब्द निकले थे
Forgive them, Father! They know not what they do.
हे परमपिता ईश्वर! क्षमा कर देना इन लोगों को, क्योंकि ये नहीं जानते हैं कि ये क्या कर रहे हैं। शताब्दियों पर शताब्दियां अतीत के गर्भ में समा गई परन्तु प्रभु ईसा के ये अन्तिमं शब्द आज भी उनकी भगवत्ता का मुखर गान कर रहे हैं।
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