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क्षमा का अपष्ट आदर्श
(सांस्कृतिक पृष्ठभूमिः)
क्षमा एक विशिष्ट आत्मगुण है। क्षमा को शूरवीरों का आभूषण कहा गया है। अपकारी के प्रति उपकार का भाव क्षमा है। शक्तिसम्पन्न होते हुए निर्बल द्वारा दिए गए कष्ट को सहज शान्त भाव से जी लेना और उसके अहित का विचार तक न करना ही वस्तुतः क्षमा का सही स्वरूप है।
मानव में बदले की प्रवृत्ति होती है। कोई उसे कष्ट दे तो वह बदले में क्रोधित होता है और उसे कष्ट देने के लिए प्रयत्नरत हो जाता है। क्षमा भी एक बदला है। उत्कृष्ट बदला है। क्षमावान् पुरुष को कोई कष्ट देता है तो वह बदले मे कष्टदाता को करुणा देता है उसके हित के प्रति चिन्तित बनता है। क्षमा का माहात्म्य प्रत्येक धर्म-परम्परा में स्वीकार किया गया है। भगवान महावीर ने क्षमा को आत्मशक्ति का हेतु बताते हुए कहा थाखन्तीए णं परीसहे जिणइ।
(उत्तरा. 29/46) -क्षमा से परीषहों (संकटों) पर विजय प्राप्त की जाती है।
आचार्य हेमचन्द्र के मत में संयम रूपी उद्यान को यदि हराभरा रखना है तो क्षमा रूपी क्यारी अत्यावश्क है- श्रयणीया क्षमैकैव संयमारामसारणिः (हेमयोगशास्त्र. 4/11)। आचार्य उमास्वाति के शब्दों में क्षमावान् व्यक्ति ही धर्म के मूल 'दया' की साधना कर सकता है- यः
जैन धर्म एवं दिक धर्म की सांस्कृतिक एकता, 152