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________________ पागल हो उठा । उसने शबरी को बुरा-भला कहा और वापिस लान करने के लिए तालाब पर गया। तालाब के जल को स्पर्श करते ही तालाब कृमियों से भर गया और जल रूधिर के समान रक्त हो गया। यह सब शबरी के अपमान के कारण हुआ। फिर एक दिन श्रीराम लक्ष्मण और सीता के साथ दण्डक वन में पधारे। ऋषियों के आग्रह भरे आमंत्रणों को ठुकरा कर श्रीराम सर्वप्रथम शबरी की कुटिया में आए। शबरी का प्राण-प्राण हर्षातिरेक से नृत्य कर उठा। अपने प्रभु राम को शबरी ने बेरों का भोजन कराया। ऋषियों के अहम् गल गए। सभी ने अपनी भूल पर पश्चात्ताप किया। ऋषियों के निवेदन पर श्री लक्ष्मण जी ने शबरी से कहा कि वह तालाब के जल का स्पर्श करे। शबरी ने वैसा किया तो रूधिर भरा जलाशय पुनः स्वच्छ जल सा बन गया। सेवा की मूर्ति, भक्तिपरायणा सन्नारी शबरी ने अपने जीवन के श्वास-प्रश्वास को सेवा और रामनाम से जोड़कर देह त्याग किया। उसे परमधाम की प्राप्ति हुई। OOO ___ वैदिक व जैन- इन दो परम्पराओं से जुड़े तीन कथानक यहां प्रस्तुत किये गये हैं। जैन परम्परा के 'नन्दीषण मुनि' के कथानक में नन्दीषेण अतिकुरूप और संसार के ठुकराए हुए एक ऐसे युवक थे जिन्होंने आत्महत्या का निर्णय कर लिया था। लेकिन एक संत के निर्देश पर उन्होंने सेवा के कर्म को अपना धर्म बनाया। उनकी ख्याति न केवल त्रिलोक में फैली, बल्कि कुरूप नन्दीषेण से सर्वांगसुन्दर वसुदेव का उद्भव हुआ। (1)वासुदेव श्रीकृष्ण, (2)भक्तिमती शबरी-ये दो कथानक वैदिक परम्परा से उद्धृत हैं। इन दो कथानकों में सेवा के माहात्म्य का समान संगान हुआ है । वैदिक व जैन- इन दो पृथक-पृथक परम्पराओं से जुड़े इन तीन कथानकों में एक ही सत्य मुखरित हुआ है । वह है- सेवा से मेवा मिलता है। इससे यह भी स्पष्ट it खण्ड/+5
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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