SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बोले - "राजन्! आपकी महिमा अकथ्य है । आप संसार में सर्वश्रेष्ठ हैं । आप परमपद के अधिकारी हैं ।" इस प्रकार महाराज शिवि की स्तुतियां करते हुए देवराज इन्द्र देव-परिवार सहित अपने लोक को लौट गए। OOO 'अहिंसा परमो धर्मः ' - यह भारतीय संस्कृति का उद्घोष रहा है | अहिंसा धर्म का ही विशिष्ट रूप 'दया' है। यहां (ऊपर) प्रस्तुत दोनों कथानक मूलतः भारतीय संस्कृति के इसी सनातन धर्म 'दया' की महनीयता को रेखांकित करते हैं । प्राणि-दया हेतु अपना प्राण भी न्योछावर करना पड़े तो निःसंकोच करना चाहिए- यह दोनों कथानकों में अन्तर्निहित तथ्य समान है । महाराज मेघरथ का कथानक जैन परम्परा से उद्धृत है। दयामूर्ति महाराज शिवि की कथा वैदिक परम्परा प्रसिद्ध है। महाभारत के वनपर्व के 197-198 अध्यायों में इस कथा का निरूपण है । इसी श्रेणी के एक अन्य दयाशील राजा उशीनर की कथा भी वनपर्व के 13 वें अध्याय में वर्णित है। वैदिक परम्परा में महाराज शिवि, तो दूसरी तरफ जैन परम्परा के महाराज मेघरथ- दोनों ही प्राण- दया का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। अतः ये कथानक यह प्रेरणा देते हैं कि अपने प्राणों की भी परवाह न करते हुए अन्य प्राणियों के प्रति दया व करुणा का व्यवहार करना चाहिए। दोनों कथानकों के पात्रों के नामों पर ध्यान न दें तो ऐसा प्रतीत होता है कि एक ही कथा के दो संस्करण जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सांस्कृतिक एकता 132
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy