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________________ हित-अहित पर किंचित् मात्र भी विचार न करता हुआ कष्ट-कवलित प्राणी को सम्मुख पाकर उसका कष्ट हरने के लिए उद्यत हो जाता है। ऐसा व्यक्ति त्रिकाल और त्रिलोक में कीर्तित और वन्दित होता है। भारतीय संस्कृति के जो भी मौलिक सिद्धान्त हैं, उनमें दया, करुणा, व अनुकम्पा का महनीय स्थान है। भारतीय संस्कृति की दोनों धाराओं- वैदिक व श्रमण (जैन व बौद्ध) परम्परा में 'दया' को 'अहिंसा' का एक व्यावहारिक रूप स्वीकारते हुए इसे अनिवार्य सामाजिक कर्तव्य के रूप में निरूपित किया गया है। चूंकि सभी जीव जीना चाहते हैं, सभी जीवों को सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय है, इसलिए अहिंसा और उसके दया आदि व्यावहारिक रूपों को एक सार्वभौमिक मानवीय धर्म/ नैतिक कर्तव्य के रूप में सर्वत्र प्रतिष्ठित करने का प्रयास सभी धर्मों में हुआ है। भगवान् महावीर ने कहा था- 'सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा' (आचारांग- 1/2/3/78)- अर्थात् सभी प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है, वे सुख चाहते हैं, दुःख नहीं चाहते। भगवान् बुद्ध ने भी इसी विचार को अभिव्यक्त किया- सुखकामानि भूतानि, सव्वेसिं जीवितं पियं (धम्मपद, 10/3) अर्थात सभी प्राणी जीना चाहते हैं और उन्हें सुख प्रिय होता है। वैदिक परम्परा का भी यह स्पष्ट अभिमत रहा हैन ह्यात्मनः प्रियतरं किंचिद् भूतेषु निश्चितम्। अनिष्टं सर्वभूतानां मरणं नाम भारत ॥ (महाभा. 11/7/27) -अपनी आत्मा से बढ़कर प्राणियों को कोई दूसरी वस्तु प्रिय नहीं है। मृत्यु किसी को इष्ट नहीं है। महाभारत में ही अन्यत्र कहा गया हैदुःखादुद्विजते सर्वः सर्वस्य सुखमीप्सितम् (महाभा. 12/139/62)- अर्थात् दुःख से सभी घबड़ाते हैं, सभी को सुख अभीष्ट है। इसी वैचारिक पृष्ठभूमि को आगे बढ़ाते हुए महात्मा बुद्ध ने कहा- अत्तानं उपमं कत्वा न हनेय्य न घातये (सुत्तनिपात, 3/37/2) अर्थात् सब प्राणियों को अपने जैसा समझ कर न स्वयं किसी का वध करे और न ही दूसरों से वध कराये । प्राणियों को आत्मवत् समझने वाले विवेकशील प्राणी की प्रवृत्ति में दया, करुणा, अहिंसा नि धर्म एव आदिक धर्ग की सास्कृतिक एका 126
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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