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________________ मान्यताओं के अनुरूप ढालते हुए प्रस्तुत किया। कथानकों के संक्रमण की इस प्रवृत्ति ने दोनों परम्पराओं में परस्पर निकटता स्थापित की है और साथ ही, दोनों परम्पराओं के साझे सांस्कृतिक मूल्यों को उजागर करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दोनों परम्पराओं के कथानकों में प्राप्त साम्य ने अनेक अनुसन्धाता विद्वानों व मनीषियों का ध्यान आकृष्ट किया है। बौद्ध जातक, महाभारत, वैदिक पुराण, जैन आगम-इनमें एक ही कथानक ने किस प्रकार विविध रूप धारण किया है, या एक ही कथ्य को रेखांकित करने के लिए दोनों परम्पराओं में एक जैसे कथानक प्रस्तुत किये गए हैं- इस विषय पर कुछ विद्वानों ने शोधपूर्ण कार्य भी प्रस्तुत किये हैं। फिर भी इस दिशा में और भी अधिक अनुसन्धान अपेक्षित हैं। कुछ कथानक, प्रायः जिन पर विद्वानों की दृष्टि नहीं पड़ी है, उन्हें संकलित कर प्रस्तुत कृति के द्वितीय खण्ड (जैन व वैदिक कथाओं में एकता के स्वर) में प्रस्तुत किया जा रहा है। ये कथाएं दोनों परम्पराओं के साझे सांस्कृतिक मूल्य को रेखांकित करती हैं और घटना-साम्य भी प्रदर्शित करती हैं। इनमें वे कथाएं भी हैं जो जन-सामान्य में प्रचलित रही हैं और भारतवर्ष के व्यापक सांस्कृतिक ताने-बाने से जुड़ी हुई हैं, साथ ही वे कथाएं भी हैं जो परस्परसंमत धार्मिक साहित्य में निर्दिष्ट हैं। दोनों परम्पराओं की सांस्कृतिक दृष्टि से एकता-समानता के स्वर जो इन कथाओं में मुखरित हुए हैं, उन्हें रेखांकित करना प्रस्तुत द्वितीय खण्ड का उद्देश्य है। दोनों परम्पराओं में सैद्धान्तिक समन्वय वैदिक व जैन धर्म-दर्शन दोनों ही सांस्कृतिक मूल्यों व आदर्शों में प्रायः एकमत हैं। वस्तुतः दोनों ही परम्पराएं समग्र भारतीय संस्कृति की ही उपधाराएं हैं और दोनों सैद्धान्तिक एकसूत्रता प्रथम गाड/115
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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