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________________ (10) अन्त्येष्टि संस्कार दोनों परम्पराएं अन्त्येष्टि या मृतक संस्कार को मानती हैं । सामान्यतः दोनों में मृतक को अग्रि में जलाने का विधान मान्य है । इसे और्ध्वदेहिक संस्कार भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, जलप्रवाह आदि की आपवादिक घटनाओं का भी निरूपण प्राप्त होता है । यह संस्कार मृतक के प्रति उसके सम्बन्धियों व परिजनों की श्रद्धा एवं उनके विशिष्ट कर्तव्य को भी व्यक्त करता है । आराधना व बहुमान के पात्र : देव-देवियां वैदिक व जैन- इन दोनों परम्पराओं में आराधना-उपासना के केन्द्र कुछ दिव्य व्यक्ति रहे हैं। इसी आराधना - उपासना की पृष्ठभूमि में देव-तत्त्व की अवधारणा का उद्भव व विकास तथा देव-परिवार का विस्तार होता रहा है। उक्त दोनों परम्पराओं में अपने - अपने आराध्य देव हैं और अपना-अपना देव - लोक व देव-परिवार । यद्यपि दोनों में मौलिक धारणाओं पर आधारित विषमताएं हैं, तथापि कुछ स्थलों पर वे परस्पर निकट भी आई हैं और उनमें साम्य के बिन्दु भी सहजतया ढूंढे जा सकते हैं । उक्त दोनों परम्पराओं के साम्य को रेखांकित करने से पूर्व, दोनों परम्पराओं की उपासना पद्धति व देववाद- अवधारणा की एक संक्षिप्त रूप- रेखा प्रस्तुत करना यहां प्रासंगिक होगा। 1. वैदिक उपासना पद्धति की पृष्ठभूमिः वैदिक परम्परा में देववाद को दो छोर हैं- 1. एकेश्वरवाद और 2. बहुदेववाद । इन दोनों में से कौनसी अवधारणा पूर्ववर्ती है और कौन-सी उत्तरवर्ती - इस सम्बन्ध में विद्वान् एकमत नहीं है । हो सकता है, प्रारम्भ में विविध देव-शक्तियों की अवधारणा हुई और बाद में उन शक्तियों की नियामक रूप एक परमेश्वर की अवधारणा जैन धर्म एवं वैदिक धर्म की सास्कृतिक एकता 90
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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