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________________ जैन परम्परा की व्रतावतरण क्रिया भी विद्याध्ययन की पूर्णता होने पर सम्पन्न होती है और गृहस्थ बनने का द्वार खोलती है। व्रतावतरण क्रिया के बाद, ब्रह्मचारी विद्यार्थी गुरु की आज्ञा से वस्त्र, आभूषण आदि को ग्रहण करता है और अपनी आजीविका चुनता है। (8) विवाह व संन्यास वैदिक व जैन- दोनों परम्पराएं विवाह संस्कार को मान्यता देती हैं। दोनों में अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप विधि-विधान व क्रियाकाण्ड स्वीकृत हैं। (9) गृहत्याग व प्रव्रज्या से सम्बद्ध संस्कार वैदिक परम्परा में वानप्रस्थ संस्कार व संन्यास संस्कारये दो संस्कार विधियां है जो गृहत्याग व विरक्ति की पृष्ठभूमि पर आधारित हैं। वस्तुतः इनका संस्कार रूप में वर्णन प्राप्त नहीं होता, अपितु आश्रम-व्यवस्था के अंग के रूप में इनका निर्देश मिलता है। वैदिक पौराणिक निरूपण के अनुसार, वानप्रस्थ के इच्छुक गृहस्थ को जिसके पुत्र के पुत्र हो जाये तो वन में जाकर आश्रय लेना चाहिए। वन में वह अकेला या अपनी भार्या के साथ रहे। वानप्रस्थी को ग्रीष्म ऋतु में पंचाग्नि तप और वर्षा में गीले वस्त्रों से तप करना चाहिए। वानप्रस्थी को जटा धारण करना, नित्य अग्निहोत्र, भूमि पर शयन, दिन में तीन बार स्नान, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन, अतिथियों की पूजा आदि समस्त नियमों का पालन करना चाहिए। सभी के संग (आसक्ति) का परित्याग कर देना, ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्ण परिपालन, निरभिमानी होकर भिक्षा के अन्न को खाने वाला, शान्त व आत्मज्ञानी होना-यही संन्यास आश्रम में धर्म है। संन्यासी को समत्व भाव धारण करके नित्य ध्यान एवं धारणा से जोन में दिक धर्म की सानिति एता 6824
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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