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(4) धृति क्रिया-गर्भ से सातवें महीने में गर्भ की सकुशल वृद्धि की कामना से देवोपासना आदि के साथ धार्मिक क्रिया की जाती है।
(5) मोद क्रिया-गर्भ के 9 वें महीने, गर्भ की पुष्टि के लिए स्त्री (माता) को मंगलाभूषण आदि से प्रमुदित करने हेतु धार्मिक क्रिया की जाती है।
(2) जातकर्म संस्कार व प्रियोद्भव क्रिया
वैदिक परम्परा का जातकर्म तथा जैन परम्परा की प्रियोद्भव क्रिया- ये दोनों प्रायः समान हैं। सन्तान उत्पन्न होने के अनन्तर जातकर्म संस्कार होता है। बच्चे को दही व घी का मिश्रण चटाया जाता है और नवजात शिशु के भावी सकुशल दीर्घ व स्वस्थ जीवन की कामना की जाती है।
जैन परम्परा की प्रियोद्भव क्रिया भी प्रायः वैसी ही है। नवजात शिशु को अभीष्ट देव के स्मरण के बाद शुभाशीर्वाद देना, गर्म जल से स्नान कराना, गोद में उठाकर आकाश दिखाना एवं यथा शक्ति दान देना आदि इस क्रिया के अंग हैं।
(3) नामकरण संस्कार/ क्रिया
दोनों परम्पराओं में नाम-साम्य वाले ये दोनों संस्कार हैं । वैदिक परम्परा में नामकरण संस्कार है, वही जैन परम्परा में नामकरण क्रिया है। यह कब किया जाय- इसमें वैदिक स्मृतिकार एकमत नहीं है । कुछ इसे दसवें दिन, कुछ 12 वें दिन, कुछ 18 वें दिन पर तो कुछ एक मास पर करने का निर्देश देते हैं । जैन परम्परा में जन्म से 12 वें दिन में इसे करने का विधान है।
प्रथम भार 85