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________________ पृथक् 'मृतक संस्कार' को भी जैन पुराणों में मान्यता दी गई है, अतः समस्त क्रियाएं 54 समझनी चाहिएं। इनमें भी व्यावहारिक दृष्टि से प्रारम्भ की 16 क्रियाएं, साधु जीवन स्वीकार करने की क्रिया तथा मृतक संस्कार- इस प्रकार 18 क्रियाओं को प्रमुखतया महत्त्व दिया जा सकता है। इन समस्त क्रियाओं में जो-जो क्रियाएं वैदिक संस्कार से समता रखती हैं, उनका संक्षिप्त निरूपण यहां प्रासंगिक व उपयोगी प्रतीत होता है। (1) गर्भाधान-सीमन्तोन्नयन एवं गर्भान्वय क्रिया: वैदिक परम्परा में प्रथम संस्कार गर्भाधान-संस्कार है। मानव-व्यक्तित्व के प्रथम बीजारोपण से पूर्व, यह संस्कार किया जाता है। शुभ तिथि व दिन का विचार करते हुए गर्भाधान करने वाला पति इस संस्कार का प्रमुख अनुष्ठाता होता है। गर्भ के तीसरे मास में पुंसवन संस्कार किया जाता है। योग्य पुत्र की उत्पत्ति होयह कामना इस संस्कार की पृष्ठभूमि होती है। गर्भ के चौथे से लेकर आठवें मास तक किसी भी मास में सीमान्तोन्नमय संस्कार किया जाता है। गर्भ-भार के कृश व क्लान्त माता को प्रमुदित करना तथा उसके कल्याण की कामना कर इस संस्कार की पृष्ठभूमि होती है। जैन परम्परा में इन्हीं उपर्युक्त संस्कारों से समता रखनेवाली 5 क्रियाएं हैं (1) आधान क्रिया- व्यावहारिक रूप से स्त्री-संसर्ग से पूर्व, देवोपासना आदि की धार्मिक क्रिया की जाती है। (2) प्रीतिक्रिया- गर्भ से तीसरे मास, समारोह पूर्वक देवोपासना आदि की धार्मिक क्रिया की जाती है। (3) सुप्रीति क्रिया-गर्भ से 5 वें महीने में समारोह पूर्वक देवोपासना आदि की धार्मिक क्रिया की जाती है। जाति धर्म की सात 1 64
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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