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प्रमुख संस्कार/धार्मिक क्रियाएं
संस्कार शब्द की निष्पत्ति 'सम्' पूर्वक 'कृ' धातु से 'घञ्' प्रत्यय से मानी गई है। 'संस्क्रियते अनेन इति संस्कारः' । इसका अर्थ है- संस्कारण या परिमार्जन अथवा शुद्धिकरण।
भारतीय संस्कृति में 'संस्कार से तात्पर्य ऐसी क्रिया से माना गया है जिसके द्वारा व्यक्ति-विशेष की पात्रता को सामाजिक गतिविधि के अनुकूल बनाया जाता था। उदाहरणार्थ, जैमिनी-सूत्र (3/1/3) की व्याख्या में आचार्य शबर ने संस्कार शब्द की व्याख्या करते हुए वर्णन किया है कि संस्कारो नाम स भवति यस्मिाते पदार्थो भवति योग्यः कस्यचिदर्थस्य'-संस्कार वह है कि जिसके होने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के लिए योग्य हो जाता है। इसी प्रकार कुमारिलभट्ट ने तन्त्रवार्त्तिक में कहा है कि-'योग्यतांचादधानाः क्रियाः संस्कारा इत्युच्यन्ते'- अर्थात् संस्कार उन क्रियाओं/विधि-विधानों को कहा जाता है जिनसे भावी कर्तव्य व उत्तरदायित्व वहन करने की पात्रता का आवाहन/निष्ठापन व्यक्ति में किया जाता है।
वैदिक व जैन दोनों परम्पराओं में विविध संस्कारात्मक क्रियाओं को मान्य किया गया है। वैदिक परम्परा में इन्हें संस्कार नाम दिया गया है, जबकि जैन परम्परा में 'क्रिया' कहा गया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि जैन परम्परा में उक्त संस्कारोचित क्रियाओं का व्यवस्थित निरूपण पौराणिक काल में (गुप्त काल या उसके बाद) ही प्राप्त होता है। सम्भवतः इसे वैदिक परम्परा का प्रभाव कहा जा सकता है।
___ वैदिक परम्परा के संस्कारों का निरूपण धर्मसूत्रों व स्मृतियों में विस्तृत रूप से प्राप्त होता है (द्र. गौतम धर्मसूत्र, आपस्तम्ब धर्मसूत्र, वशिष्ठ धर्मसूत्र, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति आदि)। जैन परम्परा में आ. जिनसेन-कृत आदिपुराण (के 38 वें पर्व) में इनका विस्तृत निरूपण प्राप्त होता है।
प्रथम वगड,61