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________________ इनकी संख्या के विषय में वैदिक परम्परा ऐकमत्य नहीं रखती।गौतम ने 4, वैखानस ने 18, अंगिरा ने 25, तो व्यास ने 16 संस्कार माने हैं। किन्तु सर्वमान्य रूप से विद्वानों ने संस्कारों की संख्या को 16 मान कर उनका निरूपण किया है।जैन परम्परा में 53 क्रियाएं मानी गई हैं। विवाह से पूर्व तक की क्रियाएं वहां 16 ही हैं। वैदिक परम्परा के 'संस्कार' तथा जैन परम्परा की क्रिया'इनमें अपने-अपने धर्म-दर्शनों के अनुरूप वैषम्य या मौलिक भेद भी है तो साम्य भी है। उक्त दोनों अवधारणाओं में प्रमुखतः साम्य यह है कि दोनों यह मानती हैं कि मानव-जीवन में निरन्तर वैयक्तिक परिष्कार की अपेक्षा है, उक्त परिष्कार/संस्कार से सम्पन्न होने के लिए आयु का एक विशिष्ट समय होता है, सामाजिक व पारिवारिक वरिष्ठ जनों द्वारा आयोजित धार्मिक वातावरण के मध्य, भावी आत्मीय परिष्करण/उन्नयन/शुद्धीकरण की प्रक्रिया में प्रविष्ट होने के लिए विशिष्ट समारोह या आयोजन उक्त संस्कारों/क्रियाओं के माध्यम से किया जाना अपेक्षित है। दोनों परम्पराओं के संस्कारोचित विधि-विधानो में कुछ साम्य भी दृष्टिगोचर होता है, जिन्हें यहां रेखांकित करना यहां अभीप्सित है। वैदिक परम्परा के प्रमुख 16 संस्कार इस प्रकार हैं:(1) गर्भाधान, (2) पुंसवन, (3) सीमन्तोन्नयन, (4) जातकर्म, (5) नामकरण, (6) निष्क्रमण, (7) अन्नप्राशन, (8) चूड़ा कर्म, (9) कर्णवेध, (1) उपनयन, (11) वेदारम्भ, (12) समावर्तन, (13) विवाह, (14) वानप्रस्थ, (15) संन्यास, (16) अन्त्येष्टि। इनमें से 1-3 गर्भ से सम्बद्ध हैं, 4-9 जन्म के बाद आयोजित होते हैं, 1-12 शिक्षा ग्रहण व विद्यार्थी जीवन से जुड़े हैं। 13 वां गृहस्थाश्रम में प्रवेश से, 14 वां वानप्रस्थ चर्या के अंगीकार से तथा 15 वां संन्यास-आश्रम में किये जाने वाले पदार्पण से सम्बद्ध है। 16 वां संस्कार मृतक-संस्कार है जो वर्तमान गति को छोड़ कर नई Dोन दित धर्म को साततिकात 82
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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