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________________ जैन परम्परा में अष्टमंगलों में 'कलश' भी परिगणित किया गया है (औपपातिक सू. 49,2, हरिवंशपुराण- 2/72,5/364 जम्बूद्दीवपण्णत्ति सू. 5/1 5 आदि)। यह जिनेन्द्र देव के 18 लक्षणों में भी परिगणित है (आदि पुराण- 15/37-44)|भवनवासी देव अग्रिकुमार का तथा 19 वें तीर्थंकर मल्लिनाथ का चिह्न भी कलश माना जाता है। (6) पुष्पमाला: पुष्प, पुष्प-माला या उसकी तोरणमाला- ये सभी मांगलिक वस्तुएं हैं। महाभारत में श्वेत-पुष्प को मांगलिक माना गया है (महाभारत- 5/4/7-8) | पुष्प उल्लास व सौभाग्य के प्रतीक हैं। इसीलिए मांगलिक कृत्यों में घर को पुष्पों, पुष्प-माला व तोरणमाला आदि से सुसज्जित किया जाता है। लक्ष्मी को पद्मकरा (हाथ में कमल लिए हुए) के रूप में निर्दिष्ट किया गया है (भागवत8/8/14,8/2/25)। जैन परम्परा में भी पुष्पमाला के मांगलिक स्वरूप को अनेक स्थलों पर अभिव्यक्त किया गया है (तिलोयपण्णत्ति- 4/186769, औपपातिक- 2, प्रतिष्ठासारसंग्रह- 6/35-36)।नील कमल को 21 वें तीर्थंकर नमिनाथ का तथा पद्मकमल को छठे तीर्थंकर पद्मप्रभ का चिह्न माना जाता है। तीर्थंकर के गर्भ में आने से पूर्व माता जो स्वप्न देखती है, उनमें 'पुष्पमाला' भी निर्दिष्ट है। कल्पवासी देव आनतेन्द्र का आयुध भी श्वेतपुष्पमाला है, तथा कमल-माला कल्पवासी प्राणतेन्द्र का आयुध है। (7) ओंकार: वैदिक व जैन-दोनों परम्पराएं ओंकार को मांगलिक प्रतीक तथा आध्यात्मिक महामन्त्र मानती हैं। वैदिक परम्परा में इसे प्रणव नाम से भी अभिहित किया जाता है। प्रथम भण्ड 79
SR No.006297
Book TitleJain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2008
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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