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कि तूं वीनव्या नाम शत आटु वारू, कि तें नही, विभो, एतला नाम सारू । कि तू नाम छे सहस्र, लखि, कोडि जोडी, कि तूं किम करी वर्णवु, बुद्धि थोडी ।।१२१।। कि तु भक्तने मुक्ति दातार दीट्ठो, कि तूं सेवतां सुधा-रस पाहें मीट्ठो। कि तूं “ॐ नमो भगवते पार्श्व नाथं," "मा या, धरण, पद्मा व ती सहित” साथं ।।१२२।। कि तू "अट्टे मट्टे च क्षुद्र विघटे,” कि तुं "स्तंभ य, स्तं भय,” क्षुद्र थटे । कि तू "चूर य," दुष्ट दारिद्रय चूरं, कि तुं “पूर य,” वां छि त स्वाहा पूरं ॥१२३॥ कि तूं “न मि ऊ ण पास वि स हर" जिणं दं, कि तुं “वि स ह जिण फुलिं गं" सदानंदं । कि तू प्रण व, मा या, श्री- का र-युक्तं, कि ते नाम अहँ सुर-वंद्य जप्तं ॥१२४।। कि तू मंत्र - विधि विविध किय जपीय जाणुं कि तुं एक तूझ नाम मुख कमलि आणु । कि तू पास जि न पास जि न कही वखाणुं, कि तुं तेणे मुझ करि सफल विहाणुं ॥१२५।। कि तू विनवीउ बाल जिम बोल भाखी, कि तूं में ग्रही सहस्र-दल कमल राखी । कि तूं प्रगट था, देव, दरसन आपी, कि तूं सदा मुझ घटि रहें सर्वव्यापी ॥१२६।। कि तू माहरी आपदा वेग वारे, कि तूं दुख-सागर पड्यां, देव, तारे । कि तू भेट दइ भक्तने हीया हेजे, कि तू पास जी, कुशल कल्याण देजे ॥१२७॥