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अथ षट्पद कवितानी ।। शुभ संपूरण आयु, काय नीरोग निरंतर, विद्या, विनय, विवेक, विमल वाणी, अविचल, वर, पूरण अर्थ, प्रताप, ध्यान निर्मल, यश उज्ज्वल, बोध-बीज, बल बुद्धि, मरण सुसमाधि, मुगति-फल, ए आस, पास प्रभु, पूरजे, कृष्ण-कटक निर्जरा करण, वली सर्व वि ज य सुंदर बिरुद सकल संघ तूह पय-सरण ॥१२८॥ आवे वर्ण अढार, पास आशा करी तोरी, संघ न लभे पार, सार गुण गावे गोरी, महके अगर, कपुर, वास, केसर, कस्तूरी, चंदन चरचे पाय, ध्याय, मन आनंद पूरी, कलि-काल मांहे आखे अणी देव एक तूं जाणीयो, महाम्लेच्छ हाथ जोडावीया, जग सघलो वशि आणीयो ॥१२९॥ आज भयो सुकयत्थ, आज परमानंद पायो, आज लहिउ परमत्थ, आज दुख दूर गमायो, आज काज सवि सीद्ध, पीध पीयूष परम रस, भेटीयो पास जि णं द, हवां निर्मल दृग् मानस, संवत सोल छ प न वे, आसो वदि नवमी नमो, नक्षत्र पुष्य मंगल दिवस पा स-छंद पूरण हवो ॥१३०॥ हवां कोडि कल्याण, जाण जाणी मन रंज्यो छंद भणी उ भगवान, भक्त भय भावदि भंज्यो, सूणी सिद्धि करि हाथ, गुणी गुण अंगे आण्यौ, प्रह उट्री प्रत्यक्ष सदा करि सफल वीहाण्यो, गंगाजल निर्मल गुण रयण थुगुं देव तारण तरण, श्री संखे स र पास, संकट-हरण, सकल संघ मंगल-करण ।। ५३१।। श्री संखे स र पास पास ध र णिं द सूहावे, पउ मा व ई बिरद जास सकल गुण गावे, कलियुग कामिक देव, हेव पुरुषोत्तम पायो, कामधेनु, घरकाम, हाथ चिंतामणि आयो, बुद्ध भानु मे रू-सेवक भणे, स्वामी मया साची करो, न य सुंदर शिष्य संपतिकरण, जयो पास संखे स्व रो ॥१३२॥