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________________ कि तू सर्वदेवेश, तू सर्वव्यापी, कि ते जगद्गुरु तत्त्वमूर्ति थापी। कि तूं परमेशो, कि तुं परम-भानु, कि तु परम-चन्द्रो, कि ते परमप्राणो ॥११४॥ कि तू परम अमृत-सिद्धि-प्रदाता, कि तूं सर्वात्मा, स्वयंभु, विधाता। के तुं सनातन, सदाशिव, शंभु, ईशो, कि तूं शुभ-प्रद, सर्व-क्षेत्राधीशो ॥११५।। कि तू सकलो, विकलो, शुभ-समुद्रो, कि तूं अव्ययो, त्रिदश-वृद्धो, सुरेंद्रो। कि तू निर्ममो, निरंजन, निराकारो, कि तें सर्व-सत्त्वेश्वरो, सहकारो ॥११६।। कि तू निर्विकल्पो, नरोत्तमो, पुंसो, कि तूं नित्य-धर्मो, प्रभु, परमहंसो कि तूं व्योमाकार-रूपो, अलक्ष्यो, कि तूं रूपत्रितयीमयो, ध्यानलक्ष्यो ।।११७।। कि तू परम-द्रष्टा, परामृत, प्रधानो, कि तूं अच्युतो, आद्य, शांताभिधानो। कि तू अप्रमेयो, अनाद्यो, अव्यतो, कि तुं निर्भयो, परमाक्षरो, व्यक्तो ॥११८।। कि तूं परमानंद, ब्रह्मद्वयेशो, कि तूं ॐकाराकृति, भूतेशो। कि तू मनःस्थिति प्राण आरूढ कीधी, कि तूं सर्व-देवोपमो कीर्ति लीधी ॥११९॥ कि तू सर्व तीर्थोपमो, मनो-दृश्यो, कि तूं परापर-मन-साध्यो, प्रशस्यो। कि तूं मनोध्येयोऽथ भगवान् , नित्यो, कि तूं शिव-श्री-सौख्य-दातार, सत्यो ॥१२०।।
SR No.006296
Book TitleTran Prachin Gujarati Krutio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSharlotte Crouse, Subhadraevi
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1951
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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