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________________ 1॥७२॥ ॥७३॥ ॥७४ तस बंध चूरे ध्यान तोरे, दीये मान नरेश्वरो जागतु . आदित्य सोम धरे प्रेम, भौम बुध बलबुद्धिकरो सुरगुरु विशेष शुक्र साथे शनि सदा संकट हरो। तुह पाय-प्रीतो राहु केतो होइ ग्रह ग ण गुणकरो जागतु ० दुर्भगा नारी सदा सुभगा होइ यश सभर्तका वली मृतापत्या नाम धारे होइ जीवितपुत्रका । तुह ध्यान वंध्या पुत्र पामें सर्व लक्षण सुंदरो जागतु ० शाकि नी, भूत, प्रेत, व्यंतर, दुष्ट भोगादिक ग्रह्या कामणे कील्या, अंग खील्या, हृदय ते छंडी रह्या । नासवे तेहना दोष सघला नाम तुह मंत्राक्षरो जागतु वछनाग, सोमल, व्याघ्रवाल, कनकतरु, शरटकशिरं, अहिफेन, अहिविष, कालकूटं, सर्व जंगम थावरं । तु परम हंसा परम मंत्रो विषम विष नासन परो जागतु . ॥७६॥ जे काचकामल, तिमिर, वाषधिबिंदु, पडल, प्रवालए, रातिध, रोग अनेक लो च न, अवर पीड करालए । ते दोष वारण, नेत्र निरमल करे तं, अलवेसरो जागतु ० एकांत यत्र पवित्र पुहवी, राज राणी, मरस घणा, गज, तुरंगम बांध्या बारि झूले, रयण कंचण नही मणा। तुह चरण तुठा तणा ए फल, भक्त पायक परिकरो जागतु ० कामिनी कमला, पुत्र सबला, विनयवंत विचक्षणा, चालंता शत्रुकार सघले, नित महाछव पुण्य तणा । ॥७७॥ ॥७८॥
SR No.006296
Book TitleTran Prachin Gujarati Krutio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSharlotte Crouse, Subhadraevi
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1951
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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