SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करि साही राखे राशिनी परि ध्यान तुह धारक नरो जागतु ० ॥६५॥ बह साथ लुटे अति अखुटे, प्राण पंथीना हरे । चो र टा झोटा धाडि धीगट गाम पुर उद्धंस करे। तस थंभ राखे पास पाखे अवर कुण करुणाकरो जागतु . न बिहे पातक तात-घातक, छल जोइ छानां थई, पाडंति बारे, विष दीवारे, मरावे आगल रही। ते शत्र थाई मित्त जेह तु करे चित्त निरंतरो जागतु ० ॥६ ॥ तिखिण दाढा न हर गाढा, सी ह जीह नीगालतुं, करि-कुंभ फोयन, पिंग लोयन, पुच्छ मुच्छ ऊलालतुं । मृग होइ मृगपति स्वामी नामें, शशक द्वीपी चीतरो जागतु. ॥६८॥ महाकाय पर्वतप्राय, सुंडा, दंड, तुंड, प्रचंड ए मदजल झरते, मुशल-दंते करे तरु शत-खंडए । क्रोधांध धाइ, तूह पसाइ सौम्य थाइ सिंधुरो जागतु ० ॥६९॥ झलकति भाला भीम भाथी, सुभट बिहु पक्ष भडे तरवार तोमर करि कटारी अंगो अंगे आथडे । तुह पाय-समरण इश्ये महारण होइ जय-लखिमी वरो जागतु ० ॥७॥ ए अष्ट महाभय दुष्ट दारुण कोडि कष्ट निवारणो ज्वर सीत, एकांतर, दु ज्व र, तृतीयज्वर उत्तारणो। वलि विषम व्याधि अनेक वारक राजयक्ष्म कठोदरो जागतु ० |:७१॥ आखइ डीले जकड जूड्या लोह सं क ल शं जड्या दुर्मार मारे, मुखि पचारे, दुष्ट दोषी वशि पडया ।
SR No.006296
Book TitleTran Prachin Gujarati Krutio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSharlotte Crouse, Subhadraevi
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1951
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy