________________
{ ... ] की इच्छा हो तो जैसे गेहके इच्छक खेत मे गेहूं बोतें हैं और गेहूं ही पाते हैं तेसे ही इस जगतरूपी खेतसे दुःखरूपी बीजको निकाल कर सुख रूपी बीज बोना चाहिए, अर्थात् दुखी जीवोंके दुःखको दूर कर उनको सुखी करना चाहिए, उस सुखरूप बीजका वृक्ष दूसरे की अन्तरात्मामें उत्पन्न होकर उस वृक्षके सुखरूप फल आपको आनन्दसे प्राप्त होंगे। अहो बन्धुगणो ? धर्म, दया, सन्तोष सत्य, प्रामाणिकपना इत्यादि शुभगुणोंका संग्रह अपनी आत्मामें करो जिससे इस जन्ममें भी सुख भंडारके अनुभव लेनेका अवसर प्राप्त होगा
और आगेके जन्ममें भी सुख ही सुख प्राप्त होगा। यों धर्म जागृती कायम रहकर आत्माका कल्याण होगा, मोक्षकी प्राप्ति कर अभय सुखसागरमें गरक बनोगे।
छप्पय ..... परतिय मात समान गिनो परधन पाषाना । परनिंदा मुक्कवनो सहो कटुवयन सयाना ।।