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________________ [ ६८ ] प्रेमीका अप्रेमी, बनकर जगत् में अपयशरूप दुर्गंध का प्रसार करता है, क्यों कि क्रोधले संतप्त बना हुआ मनुष्य अन्धेके समान बनकर माता, पिता, गुरु, शिष्य, बंधु, भगिनी, स्वामी, सेवक, मित्र, स्वजन, उपकारी इत्यादि किसीका भी विचार नहीं करता है, वक्तपर घात भी कर डालता है, ऐसा जबर शत्रु कोई है तो क्रोध है, इसलिए मुसलमान लोग इसे गुस्सा ( गू= विष्टा सा=सरीखा ) कहते हैं इसका निग्रह करनेके लिए क्षमारूप खड्ग धारण करना चाहिए । अर्थात् [ १ ] अपनेको किसीने अपशब्द कहा तथा गाली दी तो उसके अर्थकी तरफ अपनी दृष्टि लगाना चाहिए, कि यह जो कहता है वह दुर्गुण मेरे में है या नहीं; यदि वह दुर्गुण अपनेमें नजर आगया तो यह विचार करना कि वैद्य (हकीम) को तो अपने शरीर के अंदर के रोगकी परीक्षा कराने के लिए 'फीस' देनी पडती है, और यह तो बिना फसि लिए ही अपने अंदरका दुर्गुणरूप रोग बताता है, इसलिए अपने को इसका उपकार मानना उचित
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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