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________________ [ ६९ ] है और जैसे रोगकी परीक्षा होनेके बाद औषधोपचार कर रोगको दूर करते हैं, तैसे ही यह दुर्गुण दूर होवे ऐसा उपाय अब मुझे करना चाहिए, और [२] उसने कहा है वह दुर्गुण अपनेमें नजर नहीं आवे तो विचारना चाहिए कि हीरेको किसीने कंकर कह दिया तो वह कंकर नहीं होता है, तैसे ही उसके कहनेसे में कुछ दुर्गुणी नहीं होता हूं, फिर बुरामानने का कोई कारण नहीं है, इत्यादि विचारसे क्षमारूप शस्त्रसे क्रोधरूप शत्रुका निग्रह करना चाहिये । [३] मद-मदिरा (दारू) को कहते हैं जैसे मदिरा ग्रहण करनेसे विद्वान् लोग भी ज्ञान छोडकर बीभत्स शब्दोच्चार करने लग जाते हैं, घडेपर लोटते हैं, और कभी कभी कुत्ते भी उनके मुखमें लघुशंका निवारण करते हैं, मदान्ध बने लोग भी भक्ष्याभक्ष्यका, कृत्याकृत्यका विचार नहीं करते हैं, वक्तपर माता, भगिनी, पुत्रीके संग भी व्यभिचार सेवन करने में नहीं चूकते हैं । घर, बर्तन, वस्त्रादि बेचकर भी पूर्ण करते हैं, और फजीतेसे अकाल
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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