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[६० । टुकडेमें अनंत जीव होते हैं, इसका विचार करना चाहिए। अनाज विना तो संसार चलना असह्य है, परन्तु भाजी. फली फलादिकी कमी की जाय तो बहुत अच्छा है, और कन्द, मूल, फल तो कभी नहीं खाना चाहिये, क्यों कि कंद कितने ही दिन जमीनमें रहे तो भी पकता नहीं है और जैसे कच्चे गर्भको पेट चीरकर बाहर निकालते हैं तैसे ही पृथ्वीका पेट फाडकर कन्द बाहर निकालते हैं, इसलिए इसका खाना अनर्थकारी है। ___ जो स्थावर जीवोंके पांच प्रकार कहे हैं उन्हें समझकर जो बन आवे तो सर्वथा हिंसाका त्याग करना चाहिए । सीधे बने बनाये मकान, गरमपानी और भोजन संसारमें बहुतसे मिलते हैं जिस से अपनी जिंदगी सुखसे निर्वाह हो सकती है । फिर हिंसाके प्रपंचमें फंसकर दोनों लोकमें दुःखके भागी नहीं बनना चाहिए । जो सर्वथा स्थावर जीवोंका हिंसाका त्याग नहीं बन सके तो अनर्थक हिंसाका तो जरूर ही त्याग करना चाहिए और