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________________ [ ६९ ] आर्थिककी मर्यादा करनी चाहिए कि आज के दिन से वर्ष में या उमरपर्यंत इतने तोले इतने से इतने मनके उपरान्त मट्टी, पानी, वनस्पति इनकी हिंसा नहीं करूंगा, दीपक, चूल्हे, पंखे इतने उपरान्त नहीं लगाऊंगा, इस प्रकार संसार में जितने हिंसा के कर्तव्य हैं उन सबकी मर्यादा करनी चाहिए, मर्यादा करनेके पहिले निश्चयात्मा बनकर आगेका विचार करना कि इतनी वस्तु रखनेसे मेरे आगे किसी भी काममें अडचन तो पडनेवाली नहीं, एक तोले वस्तुके स्थान दो तोले वस्तु रक्खी तो कुछ बुराई नहीं परन्तु मर्यादा किए बाद प्राणान्त होजावे तो भी की हुई मर्यादाको भंग नहीं करना, इस प्रकार करनेसें इच्छा तृष्णाका रोधन होगा, इसलिए मर्यादाका संकोच करते करते कभी ऐसा भी दिन प्राप्त हो जायगा कि सर्वथा हिंसाका त्यागी बन सबके अभयदाता बन जायेंगे । स्वTत्माकी रक्षा करनेका बोध ऊपर जो " अहिंसा" धर्मका निर्वाह करनेके
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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