SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५६ ] बिना संसारका काम चले नहीं, उस काम में जितनी हिंसा करनी पडती है उसको सार्थकहिंसा कहते हैं और काम से जो अधिक हिंसा होती है उसे अनर्थकहिंसा कहते हैं । रहने के लिए घर होते हुए भी दूसरा घर बनाना, कच्ची महीसे हाथ वगैरा धोना, विनाकारण जमीन खोदना, दूसरा रास्ता होते हुए भी मट्टी के ढेरको खूंदते हुए चले जाना, महीके ढेरपर बैठना, विना काम पत्थर आदि तोडना - फोडना, अर्थात् पृथ्वीकायकी अनर्थ हिंसा इस प्रकार होती है । ( २ ) तालाब, कूप, बावडी, नदी आदि जलाशय ( सरोवर) के अंदर उतरकर स्नान करनेसे पानी दुर्गंधित होकर रोगिष्ट होता है; और शरीर से स्पर्श हुआ गरम पानीका वेग जितनी दूर जाता है उतनी दूरके कितनेक जीव भी मर जाते हैं, इसलिए पानी के अंदर स्नान करना यह भी अनर्थ है, तैसे ही अज्ञानी मनुष्यकी तरह मरे हुए मनुष्य के शरीरकी राख तीर्थस्नान के पानी में डालना यह भी अनर्थ है |
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy