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[ ५७ ] क्यों कि राख यह क्षार पदार्थ है और अस्थि [हड्डियां] पानी में डालनेसे पानी गरम होता है जिससे भी असंख्य प्राणीकी घात होती है, इसमें फायदा कुछ भी नहीं है, क्यों कि मरे बाद शरीर का कितना ही प्रयत्न किया जाय तो भी उस जीवको उत्तम [स्वर्ग] गति प्राप्त नहीं होती है। उस जीवने तो जैसे जैसे कर्म किए थे वैसी गति उसकी उस ही दिन होगई, तैसे ही कितनेक भोले लोग ग्रहण पडे बाद घरमेंके पानीको बाहर ढोल [फेंक देते हैं और बाहरका पानी घरमें लाते हैं, यह भी अनर्थ है, क्यों कि सरोवरके पानीपर प्रत्यक्षमें ग्रहणकी छाह पडी है उसे तो घरमें लाते हैं और ग्रहणकी छाह पडनेसे बचा हुआ जो घर का पानी है उसे फेंक देते हैं, यह कैसी मूर्खता है ? अच्छा घरमें रहे हुए पानीको जो ग्रहण लगा तो दूध, दही, घृत वगैरा पदाथाको भी ग्रहण लगा, लेकिन फिर उनको बाहर क्यों नहीं फेंकते हैं ? तब कहते हैं कि उसमें तुलसीपत्र रख दिया