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[ ३९ । दिनतक सूतक पालते हो! अब जरा विचार तो करो बकरा, मुर्गा वगैरा प्राणीको घरके आंगनमें मार कर घरमें चूल्हेपर पकाकर खाते हो उसका सूतक कितने दिनका ? विष्टाको देखकर थूः थूः करते हो रक्तका दाग लगा तो धो डालते हो और विष्टा नरकसे भरे हुए मांसके टुकडेको खाते समय किसी प्रकार घृणा [मूंग] आती नहीं है। - यज्ञमें भी हिंसा नहीं करना
कितनेक लोग कहते हैं कि यज्ञका मांस तथा मंत्रसे पवित्र किया गया मांस पवित्र होता है। उस के भक्षण करने में दोष नहीं है, यह उनका कहना राक्षस जैसा है। महाऋषिका कहना है ।
देवोपहारव्याजन, यज्ञब्याजन येऽथवा || घ्नन्ति जन्तून गतघृणा, घोरांते यान्ति दुर्गतिम॥ अर्थ-जो घृणा (ग्लानी) रहित पुरुष हैं वे देवताके भेट करनेरूप छलसे अथवा यज्ञ कर के जीवों को मारते हैं, वे घोर दुर्गति [ नरक ] में जाते हैं, और वेदान्तिक भी कहते हैं कि: