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[ ३८ ] नहीं करते हैं इसलिए हमें पाप नहीं लगता है। यह भी उनका कहना नीति विरुद्ध है, क्यों कि मनुस्मृतिशास्त्रके पांचवे अध्यायके तीसरे भागमें ऐसा कहा है
अनुमन्ता विशसिता । निहन्ता क्रयविक्रयी॥ संस्कर्ता चौपहर्ता च । खादकश्चति घातकः ॥ १ ।।
अर्थात्-१प्राणी को मारने की आज्ञा देने वाला २ शस्त्र देनेवाला, ३ मारनेवाला, ४ ग्रहण करनेवाला, ५ बेचनेवाला, ६ पकानेवाला; और ७ खानेवाला यह सातों ही घातक होते हैं । कहिये अब तुम्हारा छुटकारा किस प्रकार होगा? ___और भी इस ही मनुस्मृतिशास्त्र में मांसका अर्थ ऐसा किया है कि-मां मेरे+से सरीखे, अर्थात् जैसे तू मेरा हाल करता (खाता) है तैसे ही मैं तेरे हाल करूंगा।
अहो मांस भक्षक हिंदुओ! तुम्हारे घरमें मनुष्य मर जाता है उसको स्मशानमें लेजाकर जलाते हो स्नान किए विना घरमें नहीं खाते हो, और बारह