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वर्षों के बाद परदेश से स्वदेश में आ कर आपने विवाह किया । आप को तीन पुत्र और एक पुत्रीऐसे चार संतान हुए । तीनों पुत्रों के नाम ये हैं: श्रीवृद्धिचंद्रजी, श्री दलीचंदजी, श्रीहस्तिमलजी । इनमें से श्री दलीचंदजी को, अपने भाइ बस्तीरामजी के वहां गोद दिये है। जिन का फोटू इस के साथ रक्खा हुआ है । आपने अपने तीनों पुत्र, व एक पुत्री-चारों का विवाह कर के अपनी जवाबदारी को पूरा किया है।
जिस समय बलारी में प्रतिष्ठा हुई थी, उस समय आपने ७०० रुपयों का दान किया था । न्यायनीति से व्यापार करना, यह आप का प्रधान लक्ष्य था । नीतिपूर्वक द्रव्योपार्जन कर, मोके मोके पर उस को धर्म के कार्यो में लगाना, यह आप का स्वभाव था। ___ इस प्रकार सादे जीवन को व्यतीत करते हुए व धर्मकार्य को करते हुए सं, १९९२ के महा वदि ५ के दिन, आप का स्वर्गवास हुआ । अन्तिम समय में भी आप की धर्मभावना कायम रही और दो हजार रुपये धर्मकार्यों के लिये अपने मुख से निकलवाये ।