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आप के जाने से सिवाणागढ के श्री संघ में सचमुच ही बड़ी हानि पहुंची है ।
आपही के स्मरणार्थ आप के ज्येष्ठ पुत्र श्री वृद्धिचंद्रजी ने यह ग्रंथ प्रकाशित कराया है । और सस्ते दाम में लोगों को पहूंचे, ऐसी व्यवस्था कराई है । श्री वृद्धिचंद्रजी ने अपने पिता के स्मारक में श्री नाकोड़ाजी तीर्थ में ७०१ ) रुपये दे कर एक धर्मशाला बनवाने का भी संकल्प किया हैं । श्री वृद्धिचंदजी तथा उनके और दो भाई भी पिता के जैसे उदार और धर्मप्रेमी हैं । आशा है इन के हाथ से अच्छे अच्छे कार्य होते रहेंगे ।
एम. एल. जी. मुलतानंमल रांका, जैनसभा- सिवाणागढ.