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________________ दूहा १ जाब सुणी बुद्धिवांन जन, चित्त. पांमै चिमत्कार। सांभळ. केयक समजीया, पाम्यां हर्ष अपार।। २ केयक वलि इण पर कहै- थे दांन दया दी उथाप। सरधा किहांई । ना सुणी, प्रतख . सरधौ पाप। ३ भीक्खू वलता इम भणै', पजूसणां मैं पेख। आखा आटौ आदि दै, आपै नहीं असेख। ४ पर्व दिवस पन्जुसणा, धर्म तणा दिन धार। अधिक धर्म तिहां आदरै, पाप तणौ परिहार। ५ दान अनेरा नै दीयां, जाणें धर्म जिवार। कीधौ बंध किण कारणै, चिंत तूं करौ । विचार॥ ६ एह बात है आगली, परंपरा पहिछांण। कहौ ए थाप करी किणे, वारू करौ विनांण। ७ हूं तौ हिवड़ाइज हुऔ, जद तो नहीं थो जांण। जाब दीयौ अति जुगत सू, सुण हरख्या सुविहांण।। ८ सूत्र-न्याय सुद्ध-परंपरा, सखर मिलावै स्वाम। जग पूर्वधारी जिसा, औजागर अभिरांम॥ ९ अपर दान रै ऊपरे, दीधा बलि दृष्टांत। विविध न्याय वर वारता, सांभळजो चित्त शांत। 1 ढाळ : १६ (पर नारी रो संग न कीजै) १ सैहर खेरवै पधाऱ्या स्वामी, ओटौ स्याळ प्रश्न पूछ्यौ एम। श्रावक कसाइ गिणौ थे सरीखा, कहै खोटी सरधा इसडी धारां म्हे केम? स्वाम भीक्खू रा दृष्टंत सुणजो ॥ध्रुवपद।। २ स्वाम कहै-किम गिणां सरीसा? जब ते कहै-श्रावक नै दीयां पाप जांणौ। कसाइ नै दीयां पिण पाप कहौ छो, प्रतख दो→ सरीखा इण न्याय पिछांणो॥ स्वाम. १. भि. दु. १५ ३. भि. दृ. २९ २. धान। भिक्खु जश रसायण : ढा. १६
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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