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१२ एक बाई अनुकंपा आंणने जी, पीस दिया केहत पांण।
वले आगे जाई इम बोलीयौ जी, छै कोई धर्मी पिछांण? स्वामी. १३ एक सेठ चणा सेर आपीया, पीस दिया दूजी पुनवान। ____ आटो फाकणी आवै नहीं, जिण सूं रोटी कर दो धर्म जांन।। स्वामी. १४ अनुकंपा तीजी आणने, सेर चूंन' रा फाफड़ा सोय।
सिंधुरे घाल कर दीधा सही, जीमी तृप्त होय गयौ जोय।। स्वामी. १५ तृषा लागी तिण अवसरै, वले आगे जाई बोल्यो वांन।
सेर चणां दीया इक सेठ जी, पीस दिया दूजी पुनवान।। स्वामी. १६ झट रोट्यां कर तीजी जीमावीयौ, अति लागी है तृपा अथाय।
है धर्मातमा एहवौ, प्रांण जाता नै पांणी पाय? स्वामी. १७ चौथी बाई अनुकंपा चित धरी, पायौ त्रस सहित काचौ पांण। __कहौ धर्म घणौ हुवौ केहनै, पाछै कह्या च्यारूंइ पिछांण? स्वामी. १८ आज्ञा बारला दांन रै ऊपरै, दियौ स्वाम भीक्खू दृष्टंत।
प्रत्यख कारण पाप नां जी, किण विध पुन कहंत। स्वामी. १९ हलुकर्मी सांभळ हरखै हीये, भारीकर्मा सुणे भिडेकंत।
सूतर-न्याय साचा सही, धारै उत्तम पुरुष धर खंत ।। स्वामी. २० पवर ढाळ कही पनरमी, स्वामी थापी है सरधा सार।
उत्पत्तिया बुद्धि ओपती वलि आगलि बहु विस्तार।। स्वामी.
३. शातिपूर्वक।
१. वेसन/चने का आटा। २. लवण। सिंधो (क)।
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भिक्खु जश रसायण