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ढाळ : १५ (जंबू कह्यौ मान लै रे जाया! मत लै संजम भार) १ पाखंडीयां सावज परूपीयौ, त्यांनै भीखू पूछ्यौ तिण वार। सावज मैं पुन्य सरधीयौ, इक सांभळौ हेतु उदार।।
स्वामी बुद्धि सागरू, वारू मेल्या न्याय विशाल।
अधिक गुण आगरू, भल उत्पत्तिया बुद्धि भाल॥ध्रुवपद।। २ पांच सीरी वायौ खेत परवरौजी, चणां तणो चित धार। ____नाज पांच सौ मण चणा नीपना, तब मतौ कियौ तिण वार।। स्वामी. ३ घर माहै तौ धन आपां रै घणौ, करां दांन धर्म कहिवाय।
एक जणै सौ मण चणा आपीया, बहु भिख्यास्यां नै बोलाय।। स्वामी. ४ दीया सौ मण चणा रा दूसरै, सेकाय भुंगरा सोय।
त्यार गूघरी तीजै करायन, जीमाया भिखास्यां नै जोय।। स्वामी. ५ चौथे रोट्यां सौ मण चणां तणीजी, 'कढी पाखती कराय।
भिख्यारी रांकादिक भणीजी, जुक्ति सूं दीया जीमाय।। स्वामी. ६ सौ मण चणा पांच मैं वोसिराविया, तिण रै हाथ लगावा रा त्याग।
कहौ धर्म पुन घणौ केह नैं, सखरो उत्तर देवौ 'धर राग"। स्वामी. ७ भगवंत री आज्ञा किण भणी, कुंण आगन्या बार कहात?
इम सुण उत्तर आयौ नहीं, ऐसी भीक्खू नी बुद्धि उत्पात।। स्वामी. ८ दांन ऊपर दिष्टंत' दूसरौ, स्वांम भीखू दियौ सुखदाय।
हळुकर्मी सांभळ हरखै घणा, भारीकर्मी रै द्वेष भराय।। स्वामी. ९ भिख्या मांगतौ डोकरौ भम रह्यौ, अभ्यागत दुखियौ एक।
धर्मात्मा भूखा नै धान दौ, विरुआ बोलै वचन विसेख।। स्वामी. १० एक जणै अनुकंपा आणने जी, सेर चणा दिया सोय।
गुणग्राम भिख्यारी करै घणां, आसीस देवै अवलोय।। स्वामी. ११ आगे जाई इम बोलीयौ जी, सेर चणा दिया सेठ एक।
पिण दांत नहीं कोई पीस दो, वारू छै कोई धर्मी विसेख? स्वामी.
१. भि. दृ. ४४। २. भागीदार। ३. उसके साथ कढी बनाकर।
४. सताव (मू.) ५. भि. दृ. ४५।
भिक्खु जश रसायण : ढा. १५
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