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२४ इत्यादिक बोल अनेकअख्या छै, समचै सूतर माहै सोयो जी।
जिन आगन्या नहीं ते सावज जाणौ, आज्ञा ते निरवद अवलोयो जी।।स्वाम. २५ नेम समुद्रपाल गज नै नमि ऋष, आत्म-रिष अवधारो जी।
निरवद आज्ञा माहै छै निरमळ, सावज भ्रमण संसारो जी।। स्वाम. २६ स्वाम भीक्खू इम सूतर सोधी, अनुकंपा ओळखाई जी।
विविध हेतू'न्याय युक्तिबताया, कुमीय न राखी कांई जी।। स्वाम. २७ भेषधारी भर्म पाडै भौळां रै, दया मोह राग नैं दिखाई जी।'
सिद्धंत रा जोर सूं भीक्खू स्वामी, असल सरधा ओळखाई जी।। स्वाम. २८ चवदमी ढाळ सुणी जन चातुर, अनुकंपा निरवद आदरजो जी।
रूड़ी आसता भीक्खू नीं राखी, पाखंड मत परहरजो जी॥ स्वाम. २९ दान दया सूत्र साख दिखाई, खंड प्रथम धर खंतो जी।
सूत्र नेश्राय ए ग्यांन स्वाम नौं, मतिग्यांन नौं भेद सुतंतो जी।। स्वाम.
कलश
जय सुजश कारण दुख विदारण, सुभग सुद्ध सुमति सारण कुमति वारण, जगत प्राकम मृगपति सखर धर चित, ग्यांन जिन मग्ग केतु हद सुहेतू, नमो
धारण स्वामजी। तारण कांम जी। नेत्रे ऋष गुनी। भीक्खू महामुनि।
इति श्री भिक्खु जश रसायणे प्रथमः खण्डः।।
३. प्राक्रम (क)।
१. हेतु (क)। २. जुगति (क)।
भिक्खु जश रसायण : ढा. १४