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२ वाघ सिंह हिंसक जीव विलोकी, मार न कहै मतिवंतो जी।
'मत मार' नहि कहै राग आंणी मुनि, 'सूगडांग' इकवीस' मैं संतो जी। स्वाम. ३ वीर असंजम जीतब वरज्यौ, 'दसमें सूगडाअंग'२ दयालो जी।
'दसमैं ठाणे '२वले 'आचारंग' मैं, वारूवचन अनेक विसालो जी।स्वाम. ४ 'उत्तराधेन बावीस मैं अधेने", नेम पाछा फिरिया जीव न्हालो जी।
इतला जीव हर्णै मुझ अर्थे, वारू फळ परभव न विसालो जी।। स्वाम. ५ मिथला नगरी बळती जांण नमि मुनि, सांहमौ न जोयौ सोयोजी।
'उत्तराधेन रै नवमें अधेने"५, कुरणा सावज नांणी कोयोजी॥स्वाम. ६ मनुष तिर्यंच देव माहोमाहि, विग्रह देखी विसेखो जी।
जीत हार वांछणी वरजी जिन, 'दसवैकालिक सातमैं ' देखो जी॥स्वाम. ७ वायरौ विरखा सीत तावड़ौ, कळह उपद्रव रहित सुकाळो जी।
बोल सातूंइ वांछणा वरज्या, 'दसमैकालिक सातमैं १० दयालो जी। स्वाम. ८ 'दूजे आचारंग अधेन दूसरे, प्रथम उद्देशै ११ सुपंथो जी।
माहोमा ग्रहस्थ लड़ता देखी नैं मुनि, मार, मत मार न कहै महंतो जी।।स्वाम. ९ तीन आत्म-रिष२ तीजा ठाणां रै तीजै१३, देणौ उपदेश हिसंक देखी जी।
न समझै तौ मून राखणी निरमळ, वले एकंत जाणौ विसेखी जी।। स्वाम. १० 'उत्तराधेन इकवीसमें अधेने १४, तसकर नै मारतौ देखी ताह्यौ जी।
समुद्रपाल लियौ वर संजम, मोह कुरणा नांणी मन माह्यौ जी।। स्वाम. ११ समचै अनुकंपा कही ते सांभळी, लखण आग्या थकी 'मींढ लीजै १५ जी।
प्रभु आज्ञा देवै तेतो निरवद प्रतख, आज्ञा नहीं ते सावध ओळखीजै जी। स्वाम. १२ अनुकंपा सुलसा री आणी, सुर हरणगमेषी सोयो जी। ___पुत्र देवकी रा मेल्या प्रत्यख, 'अंतगड़ मैं अवलोयो १६ जी।। स्वाम.
१. सूत्रकृतांग श्रुत. २ अ.५ गा. ३० २. सूत्रकृतांग श्रु. १ अ. १०। ३. ठाणं ठा. १० सूत्र २३। ४. उत्तराध्ययन अ. २२ गा. १९।। ५. उत्तराध्ययन. अ. ९ गा. १२ से १६। ६. दशवैकालिक. अ.७ गा.५०। ७. कलह रहित (क्षेमं)। ८. उपद्रव रहित (शिवं)।
९. सुभिक्ष (धायं)। १०. दशवैकालिक. अ.७ गा.५१। ११. आचारांग अ. २ उ. १ सूत्र २२। १२. आत्म-रक्षक। १३. स्थानांग. स्था. ३ उ. ३ सूत्र ३४८। १४. उत्तराध्ययन. अ. २१ गा. ८ से ५०। १५. पहचान लें। १६. अंतगड वर्ग. ३ सूत्र ३६ से ४१।
भिक्खु जश रसायण : ढा. १४
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